________________ वैर-विरोध करने वाले के प्रति प्र.92. साधु के बाईस परीषह कौनसे हैं ? करूणा रखना क्षमा है। उ. (1) क्षुधा (भूख) (2) पिपासा (प्यास) (3) 2. मार्दव- नम्रता रखना। जाति, शीत (4) उष्ण (5) दंशमशक (मच्छरों का कुलादि का अभिमान नहीं करना। उपद्रव) (6) अचेल (वस्त्र त्याग) (7) अरति 3. आर्जव - आर्जव यानि सरलता। (8) स्त्री (9) चर्या (10) निषद्या (11) शय्या माया, प्रपंच, दम्भ का सर्वथा त्याग (12) आक्रोश (13) वध (14) याचना (15) करना। अलाभ (16) रोग (17) तृण-स्पर्श (18) 4. मुक्ति- निर्लोभी होना। किसी मल (मेल) (19) सत्कार (20) प्रज्ञा (21) प्रकार का लोभ न रखना। 5. तप- इच्छाओं पर नियमन करना। अज्ञान (22) सम्यक्त्व। 6. संयम- हिंसा, चोरी आदि से निवृत्त प्र 93. साधु के तीन मनोरथ कौनसे हैं ? होकर मूल एवं उत्तर गुणों का उ. (1) विपुल श्रुतज्ञान सीखना (2) एकल विहारी बनना (3) पण्डित मरण को प्राप्त पालन करना। 7. सत्य- हित, मित, निर्दोष, सत्य, करना। निरवद्य एवं मधुर वचनों का प्रयोग प्र.94. साधु की चार प्रकार की करना। सुखशय्या कौनसी हैं ? 8. शौच- मन, वचन, काया व आत्मा उ. सुखशय्या यानि सुख देने वाले स्थान - - से पवित्र होना। (1) जिनवाणी में श्रद्धा (2) परलाभ की 9. आकिंचन्य- परिग्रह व आसक्ति अनिच्छा (3) काम-भोग की अकामना (4) रहित होना। स्नान आदि की अनाकांक्षा / 10.ब्रह्मचर्य-मैथुन/कामभोग से विरत होना। * ************* ****************