Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 08
Author(s): Atmaramji Maharaj
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Page 17
________________ a प्रम-बममादि काम से ममय तो फिर इस जीव का मोक्ष दोमा किम मकार माना जा सकता है। क्योंकि मनादि समाप कमी पटतानसे जीव साप बेतना पर्म का अनादि सम्पन्म। व रत्तर-तदात्मापस प्रमादि सम्पम्प नविन्य प्रकार FA (म) रूप से मनादि सम्पम्प, शिस प्रहार सपर्ष मोर मम र सम्बन्ध है। जिस प्रकार भनि मावि उपायोमारा सुवर्ष से मस पपरोसप्ताकरसी प्रकार मर्मयुहमारमा बामपन मीर बारिशरामों से विमुक्त हो सकता है। तपा शिम प्रकार पिता और पुत्र का प्रमापि समान्य बहार मातापा बीज और एपका मनादि सम्पाप बसा माता H है अथवा भार और कुछड़ी का सम्मग्य बमा माता अंक उसी प्रकार कास से कर्म भीरमात्मा का भी मनाविd संयोग पसा मा गा। जिस प्रकार संतति कमोने से पिता पुत्र का सम्मम्प म्पपणिहा माता बन बोने मे का प्रमाबाबाठा ठीकसी प्रकार प्रारमा भूवन कर्मों के मकरन से और पुपवन कमी के पय करने से.मी पिमुक्त हो जाता। निभप नप में कम सादि साम्त पदमावेसेअपकर्म किये गए वा रगती सावि भोर जप मा फोका ममममकर हिपा सब कर्म षान्त हो गए / फिम्तममा मर्याद कासम अनादिया पो मानतो दिये और भागे इस प्रकार कम से कर्म प्रमादि। मापनमा RESEPSEERESH GEEEEEE-more

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