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जैन-दर्शन के नव तत्त्व के दो पहिए हैं। रथ चलाने के लिए जिस प्रकार दो पहिए आवश्यक होते हैं, उसी प्रकार प्रगति के कदम सही दिशा में बढ़ाने के लिए विज्ञान और तत्त्वज्ञान का साथ अथ्यावश्यक है। विज्ञानरूपी मोटर के लिए तत्त्वज्ञान रूपी स्टियरिंग-व्हील अनिवार्य है। इसलिए वैज्ञानिक प्रगति के साथ तात्त्विक प्रगति होना भी आवश्यक है।
तत्त्वज्ञान को जीवन में उतारकर ही सच्चे अर्थ में उन्नति हो सकती है। यह सत्य होते हुए भी तत्त्वज्ञान कौन-सा है, यह भी एक बड़ा प्रश्न है। प्राचीन काल से ही इस तत्त्व की खोज के प्रयत्न जारी हैं। वेद, उपनिषद्, प्रचीन तत्त्वचिन्तक, गौतम बुद्ध, भगवान् महावीर जैसी महान् विभूतियों ने इस संबंध में अनेक प्रयत्न किए हैं। उनमें से भगवान् महावीर के नव (नौ) तत्त्वों का परिशीलन प्रस्तुत प्रबंध का विषय होने से उस संबंध में आवश्यक संशोधन करने का यह एक प्रयत्न है।
___ नव तत्त्वों की कल्पना प्राचीन होते हुए भी उनकी सदा, सब कालों में आवश्यकता है। जिस प्रकार पानी और हवा अनादि होते हुए भी उनके बिना किसी भी काल में मुनष्य का काम नहीं चल सकता, उसी प्रकार नव तत्त्वों की कल्पना अति प्राचीन होने पर भी सब कालों में अत्यंत आवश्यक है। मनुष्य को जन्म, जरा, मरण, आधि-व्याधि-उपाधि आदि दुःखों से मुक्त होने के लिए नव तत्त्वों के ज्ञान की आवश्यकता है। इन नव तत्त्वों के ज्ञान के बिना मानव दुःखों से मुक्त नहीं हो सकता, ऐसा जैन-दर्शन का दृढ़ विश्वास है। प्राणिमात्र मुक्ति चाहता है। प्राणिमात्र के सारे प्रयत्न दुःखमुक्ति और सुखप्राप्ति के लिए ही हैं। इसलिए नव तत्त्वों का ज्ञान प्रत्येक मानव के लिए आवश्यक है। नव तत्त्वों की कल्पना प्राचीन है इसका उल्लेख आगम ग्रंथों में मिलता है।
इन तत्त्वों के यथार्थ ज्ञान से मानव का पदार्थ-विषयक संशय दूर होता है। संशय दूर होने से तत्त्व पर श्रद्धा होती है। शुद्ध श्रद्धा होने से मानव पुनः पाप नहीं करता। जब पुनः पाप नहीं होता, तब आत्मा संवृत्त होता है। संवृत्त
आत्मा (शुद्ध आत्मा) तप के द्वारा संचित कमों का क्षय करके क्रमशः तथा समस्त कमों का पूर्ण क्षय करके (सब दुःखों का अन्त करके) अन्त करके में मोक्ष को प्राप्त होता है। तत्त्व किसे कहते हैं ?
नव (नौ) तत्त्वों का विवेचन करने से पहले 'तत्त्व' किसे कहते हैं यह समझना आवश्यक है। वेद, उपनिषद् और अन्य भारतीय साहित्य में तत्त्व के संबंध
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