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जैन-दर्शन के नव तत्त्व विज्ञान के कारण भौतिक साधनों की बड़ी उन्नति हुई है। उनके कारण मानव को बाह्य सुख तो प्राप्त हुआ है, लेकिन आध्यात्मिक दुनिया में कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ है।
आज विज्ञान की जितनी उपासना हो रही है, उतनी ही तत्त्वज्ञान की उपेक्षा हो रही है। यही कारण है कि मानव को आत्मशांति प्राप्त नहीं हो रही है। तत्त्वज्ञान के कारण ऐसी शांति प्राप्त होती है जिससे संसार के सारे पाप, ताप, सन्ताप दूर होते हैं तथा शीतलता प्राप्त होती है।
पाश्चात्य देशों में संपत्ति खूब है, भौतिक सुख खूब है फिर भी वहाँ एक्सीडेंट अधिक होते हैं, पागलपन का प्रमाण भी वहाँ अधिक है और अनिद्रा के रोग भी वहाँ बड़े पैमाने पर दिखाई देते हैं। इसका कारण केवल एक ही है और वह है- तत्त्वज्ञान का अभाव। जिसे अध्यात्म का ज्ञान होता है, तत्त्वज्ञान की समझ होती है, वह मानव किसी भी परिस्थिति में मन में समाधान रख सकता है, संतोष धारण कर सकता है। फिर उसे अभाव, तंगी, इष्ट-वियोग, अनिष्ट-संयोग आदि का दुःख नहीं हो सकता। जीवन में श्वासोच्छ्वास के समान ही तत्त्वज्ञान की आवश्यकता है। इसलिए मैंने अपने शोध-प्रबंध का विषय “जैन-दर्शन के नवतत्त्व" चुना है।
आज विज्ञान जीवन के सब क्षेत्रों में प्रगति कर उसमें खूब क्रांति और उत्क्रांति लाया है। वैज्ञानिक आविष्कारों के कारण मानव शक्तिशाली बना है, यह निर्विवाद सत्य है। परन्तु इस शक्ति का उपयोग किस प्रकार करना है इसका निश्चय विज्ञान नहीं कर सकता। शक्ति का उपयोग विकास के लिए करना है या विनाश के लिए यह मानव के हाथ में है। यह निर्णय लेने में तत्त्वज्ञान और अध्यात्म मानव के मार्गदर्शक हो सकते हैं। विख्यात शास्त्रज्ञ तथा गणितज्ञ अल्बर्ट आइन्स्टीन ने अणुशक्ति का अविष्कार किया। यह अणुशक्ति जिस मूल द्रव्य से निर्मित होती है, वह दस पौण्ड यूरेनियम संसार को एक महीने तक बिजली उपलब्ध करा सकता है और मानव-जीवन अधिक सुखी कर सकता है। परन्तु वही यूरेनियम ऐटम बम तैयार करने के लिए उपयोग में लाया जाये तो मानव- जीवन नष्ट भी हो सकता है। अमेरीका ने अणुशक्ति का उपयोग करके अणुबम तैयार किये और हिरोशिमा तथा नागासाकी इन दो जापानी शहरों पर उन्हें गिराकर लाखों लोगों का जीवन ध्वस्त किया। इसलिए मानवीय प्रगति अगर सच्चे अर्थ में हो तो विज्ञान और तत्त्वज्ञान का साथ आवश्यक है। विज्ञान और तत्त्वज्ञान प्रगति के रथ
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