Book Title: Jain Darshan Me Panch Parmeshthi
Author(s): Jagmahendra Sinh Rana
Publisher: Nirmal Publications

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Page 17
________________ समाधान चाहता है। इतिहास तिथियों और घटनाओं का क्रमश: संग्रह होता है किन्तु इतिहास का इतिहास मानव परम्परा और विश्वास में होता है जिसका मूल प्राप्त कर पाना अत्यन्त कठिन ही नहीं असम्भव भी है।। फिर भी प्राप्त इतिहास क्या है? किसने इस मन्त्र की रचना की है? इसकी रचना कब हुई हैं? यह कहना अतिकठिन है। परन्तु प्राप्त वाङ्मय के आधार पर णमोकार मन्त्र की ऐतिहासिकता पर विचार किया जा सकता है। द्वादशांग जिनवाणी का अंग होने से यह अनादि मन्त्र माना जाता है। द्वादशांग बाणी के टीकाकारों में आचार्य पुष्पदन्त, आचार्य वीरसेन, शिवकोटि, वज्रस्वामी, भद्रबाहु आदि का नाम विशेष उल्लेखनीय है / ' वर्तमान काल के विद्वानों में युवाचार्य महाप्रज्ञ आचार्य रजनीश एवं डा. नेमिचन्द्र जैन ने भी इस मन्त्र को अनादि माना है। पण्डित टोडरमल ने अकारादि अक्षर समूह को अनादि निधन माना है इसलिए कहा गया है कि - सिद्धो वर्णसमाम्नाय: / इसका के प्रकाशक पद, उनके समूह का नाम श्रुत है, वह भी अनादि निधन है / डॉ. जगमहेन्द्र सिंह राणा ने प्रकृत ग्रन्थ जैनदर्शन में पञ्च परमेष्ठी में पञ्च परमेष्ठी महामन्त्र का प्रामाणिक और तर्क पूर्ण विश्लेषण किया है / पञ्च परमेष्ठी के स्वरूप की विवेचना के अन्तर्गत डॉ राणा ने अत्यन्त सावधानी के साथ प्रत्येक पक्ष को स्पष्ट किया है। परमेष्ठी पद के निर्वचन में डॉ राणा ने हिन्दी एवं अंग्रेजी शब्दकोश.अभिधान किए हैं। डॉ० राणा ने महामन्त्र नमस्कार को अनादि नहीं माना है। इस विषय में उन्होंने जो तर्क प्रस्तुत किए है वे उचित प्रतीत होते हैं फिर भी तर्क बड़ा बहरा और तीव्रगामी होता है। वह रूकना तो जानता ही नहीं, परन्तु विश्वास उसे स्थिरता प्रदान करता है / परमेष्ठी ------ .........................----- 1. विस्तार के लिए देखिए-महामन्त्र नमोकार: वैज्ञानिक अन्वेषण, पृ० 37 2. (क) ऐसो पंच नमोक्कारो-युवाचार्यमहाप्रज्ञ . (ख) महावीर वाणी, पृ० ३३-ले भगवान रजनीश (ग) मंगलमंत्र- नमोकार - ले. नेमिचन्द्र जैन / 3. पं. टोडरमल / मोक्षमार्ग प्रकाशक, पृ० 10

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