Book Title: Dvadasharam Naychakram Part 1 Tika
Author(s): Mallavadi Kshamashraman, Sighsuri, Jambuvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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॥ ॐ ह्रीँ अहे श्रीशंखेश्वरपार्श्वनाथाय नमः ॥ आचार्यमहाराजश्रीमद्विजयसिद्धिसूरीश्वरजीगुरुभ्यो नमः । आचार्यमहाराजश्रीमद्विजयमेघसूरीश्वरजीगुरुभ्यो नमः। सद्गुरुदेवमुनिराजश्रीभुवनविजयजीपादपद्मेभ्यो नमः ।
प्रस्तावना
गुरुदेवनी प्रेरणा जैनशासनमा 'वादिप्रभावक तरीकेनी प्रसिद्धि पामेला तार्किकशिरोमणि आचार्यश्री मल्लवादि क्षमाश्रमणे रचेला द्वादशार नयचक्रना चार आरा जेटला प्रथम विभागने आचार्यश्रीसिंहमूरिगणिक्षमाश्रमणविरचित न्यायागमानुसारिणी टीका साथे विद्वानो समक्ष प्रसिद्ध करतां आजे अमने अपूर्व आनंद थाय छे ।
विक्रमसंवत् २००१ मां शहापुर ( जिल्ला ठाणा ) मां अमारुं चातुर्मास हतुं ते वखते पूज्यपाद भगवान् गुरुदेव मुनिराज श्री १००८ भुवनविजयजी महाराजानी प्रेरणाथी कोई पण आगम ग्रंथर्नु संपादन करवानो अमारो विचार थयो । मलधारिश्रीहेमचन्द्रसूरिकृतटीकासहित विशेषावश्यकमहाभाष्यने दुर्लभ तेमज उपयोगी समजीने ए ग्रंथy सम्पादन करवानी अमारी इच्छा अमे प्राचीन ज्ञानभंडारोना उद्धारक तथा अनेक ग्रंथोना संशोधक मुनिराज श्रीपुण्यविजयजी महाराजने दर्शावी, कारण के जैनागमग्रंथोनुं प्रकाशन करवा माटे थोडा समय पहेला ज तेमणे 'जिनागमप्रकाशिनी संसद्' नामनी संस्थानी स्थापना करी हती। परन्तु तेमणे जणाव्युं के 'ए ग्रंथर्नु प्रकाशन एक वार थई गयुं छे अने बीजी आवृत्तिनुं संपादन तो कोई पण करशे, परंतु नयचक्रनुं अद्यतन शैलीथी सांगोपांग संशोधन, संपादन अने प्रकाशन थवानी खास जरुर छे, कारण के ए अद्यावधि अमुद्रित छ अने तेनुं संशोधनकार्य पण घणुं कठिन छ, केमके आचार्यश्री मल्लवादिरचित नयचक्र मूळ तो मळ्तुं ज नथी, तेना उपर आचार्य श्रीसिंहसूरिक्षमाश्रमणे रचेली अतिविस्तृत नयचक्रवृत्ति ज मात्र मळे छे, एटले एनुं संशोधन-संपादन करवानी खास अगत्य छ । जो ए कार्य तमे स्वीकारो तो एने अंगेनी जोईती तमाम हस्तलिखितग्रंथादि सामग्री तथा पंडितनी जरुर होय तो मददमां पंडितने पण मोकली आपुं, एना मुद्रण-प्रकाशननी बधी व्यवस्था हुं करीश ।' एमनी आ प्रकारनी आग्रहभरी सूचनाथी में ए कार्यनो तरत स्वीकार कर्यो अने उत्तरमां जणाव्युं के 'पंडितनी मारे जरुर नथी, पण नयचक्रवृत्तिनी हस्तलिखित प्रतिओ मोकली आपो ।'
१शंखेश्वर तीर्थमा श्रीशंखेश्वरपार्श्वनाथ भगवाननी छत्रछायामां पूज्यपाद गुरुदेव श्री १००८ भवनविजयजी महाराजानो विक्रम संवत् २०१५ मा माघ शुक्ल अष्टमीनी रात्रे स्वर्गवास थयो तेथी थोडा समय पहेला ज झींझुवाडा गाममां आ प्रस्तावना लखाई गई हती । पूज्यपाद गुरुदेवनी छत्रछायामा लखायेली ते प्रस्तावना ज लगभग अक्षरशः आजे अहीं रजु करवामां आवे छे । पूज्यपाद गुरुदेवना स्वर्गवास पूर्वे सात अर सुधी (पृ. ५५२) आ ग्रंथ छपाई गयो हतो अने आठमा अरना मुद्रणनो प्रारंभ थयो हतो। पू० गुरुदेवना स्वर्गवास पछी अत्यारसुधीमा आठमो अर तथा नवमा अरनो केटलोक भाग (पृ. ७४४ सुधी) पण छपाई गयो छे। ते उपरांत, जेसलमेरना भंडारमाथी मळी आवेला अने अमे सम्पादित करेला चन्द्रानन्दरचितवृत्तिसहित वैशेषिकसूत्रनुं पण महाराजा सयाजीराव गायकवाड युनिवर्सीटिना Oriental Institute, Baroda (प्राच्यविद्यामंदिर, वडोदरा ) तरफथी प्रकाशन हमणां थई गयुं छे। एने ध्यानमा राखीने क्वचित् टिप्पणो आ प्रस्तावनामां अमे उमेर्यां छे । -मुनि जम्बूविजय, विक्रमसंवत् २०१८, वैशाख शुक्ल चतुर्थी, शंखेश्वर ॥
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