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उड़िये पंख पसार
में उत्तर तो तैयार ही रहता है । बस सामने वाले की प्रतीक्षा रहती है । ईंट आये उससे पहले ही पत्थर तैयार पड़ा है । हम तो उस सर्प की तरह हैं जो जीभ लपलपाता ही रहता है कि छुआ नहीं और डंस लिया । हम किस तरह के इंसान हैं ? हमारे हाथ में है क्या? सिवा हाथ के । हाथ में कुछ रखना ही है तो अपने पुरुषत्व को रखो और देखो कि क्या हमारे हाथ में मनुष्यत्व है ?
मनुष्य संपूर्ण मनुष्य बने, यह ध्यान का प्रयोजन है । जीवन जीने के लिए साधन चाहिए लेकिन साधन ही साध्य न बन जाएं । धन की आवश्यकता है । धन के बिना साधन नहीं होंगे, सुविधाएँ नहीं होंगी, धन के बिना समाज में इज्जत भी नहीं होती, लेकिन स्मरण रखें धन के पीछे दौड़ते हुए लक्ष्य से ही न भटक जाएँ । धन की जरूरत हो सकती है, लेकिन धन ही सब कुछ नहीं है । यह ख्याल बना रहना चाहिए। मैं जानता हूँ दुनिया में किसी को परमात्मा नहीं चाहिए सिर्फ धन चाहिए । मैं तो यह भी देखता हूँ कि जो संसार को छोड़कर संन्यास ले लेता है उसे भी धन चाहिए । अच्छा हो अब परमात्मा के मंदिरों की जगह धन के मंदिर बना दिए जाएँ जिससे वहाँ जाकर अपनी कामनापूर्ति कर सको । क्योंकि तुम मंदिरों में धन पाने ही तो जाते हो । परमात्मा से प्रार्थना भी करते हो तो धन की मांग करते हुए।
कभी तुमने ध्यान दिया है तुम कैसी प्रार्थना बोलते हो । उसमें क्या-क्या इच्छाएँ भरी होती हैं। कभी तुम पत्र मांगते हो, कभी धन, कभी भंडार भरने की प्रार्थना करते हो । अरे कभी अपनी प्रार्थना में यह कृतज्ञता प्रकट की है कि तूने इतना दिया है कि मैं इसके लायक भी न था? कभी धन्यवाद दिया कि आज इतना सुस्वादु भोजन मिला? नहीं, तुम्हारी प्रार्थना भी कामना का ही दूसरा रूप है । प्रार्थना केवल कामना की पूजा रह गई है। मनुष्य निश्चय ही ईश्वरीय शक्ति के साथ जुड़े, लेकिन अपने मनुष्यत्व में दिव्यत्व की प्रार्थना लिए । बगैर ईश्वरीय शक्ति के आदमी महज दोपाया जानवर ही होता है। हम अपने मन में रहने वाली पशुता में प्रभुता का प्रकाश संचारित करें । प्रभु
और प्रभुता को व्याप्त हो जाने दें, ताकि पशुता का प्रेशर कम हो । हम ईश्वरीय शक्ति को, उसके प्रेम, उसकी करुणा और ज्ञान की ज्योति को हाथ में रखकर संसार में जिएँ। निश्चय ही औरों का तुम्हें सहयोग मिलेगा। अगर तुम एक कदम बढ़ाते हो तो सौ कदम अपने आप तुम्हारे साथ बढ़ आते हैं। उसकी करुणा अपार है । वह हजार राहें खोल देता है । कभी अगर एक राह बन्द हो जाए, तो क्या । दूसरी राह स्वतः खुल जाती है। एक हम हैं जो खुले दरवाजे की ओर नजर नहीं उठाते । बन्द राहों की ओर ही टकटकी लगाए बैठे रहते हैं।
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