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ध्यानयोग : प्रयोग-पद्धति शिथिलता का अनुभव करें । अब पैर के अंगूठे से प्रारम्भ कर सिर के बालों तक, चित्त को एक-एक अंग पर एकाग्र करें और उसे तनाव-मुक्ति का सुझाव दें। जैसे
दाएँ पैर का अंगूठा तनाव-मुक्त हो जाये। तनाव-मुक्त हो रहा है। तनाव-मुक्त हो गया है । (शिथिलीकरण अवश्य करें)
प्रत्येक अंग पर ध्यान केन्द्रित कर इसी सुझाव को दोहराएँ । ऐसा अनुभव करें कि हम शरीर नहीं, शरीर से भिन्न चेतन-सत्ता हैं । शरीर से हमारा तादात्म्य छूट चुका है। शरीर को शव की तरह अपने से अलग पड़ा हुआ देखें । साँस की गति को भी स्वसूचन द्वारा शिथिल और मंद करें । कुछ क्षण साँस को पूर्णतः बाहर ही रोके रहें अर्थात् साँस छोड़कर फिर साँस न लें। पूर्ण शिथिलता का, विश्राम का अनुभव करें। यथाशक्ति कुछ देर इसी स्थिति में रुककर धीरे-धीरे गहरी लंबी साँस भरें । पूरे शरीर पर अपनी चैतन्य-दृष्टि दौड़ाएँ और साँस के साथ शरीर में प्रवेश करें । शरीर के प्रत्येक अंग में चेतना का संचार करें । धीरे-धीरे हाथ-पैरों को हिलाएँ । बाँयी करवट लेकर धीरे से उठकर बैठ जाएँ।
विशेष-शवासन कभी भी किया जा सकता है । जब कभी हम तनावग्रस्त या थके हुए हों, तुरंत पांच-दस मिनट के लिए शवासन करें । तनाव और थकान से अवश्य छुटकारा मिलेगा। अनिद्रा और उच्च रक्तचाप के समाधान में यह बहुत ही सहायक है । चित्त को शांत कर ध्यान लगाने में उपयोगी है।
शिविर के दिनों में स्व-सूचन का, आत्म-निर्देशन का अच्छी तरह अभ्यास कर लें, ताकि घर जाकर भी इसे स्वतः कर सकें। प्रत्येक संकेत बड़े प्यार भरे कोमल स्वर में दें । आज्ञापक या आदेशात्मक शब्दों का उपयोग न करें।
प्राण-शुद्धि प्राणायाम
५ मिनट आसनों के बाद क्रम आता है प्राणायाम का । हमारा जीवन प्राण-शक्ति से संचालित है । 'प्राण' मन, वाणी और कर्म की सम्पादन-शक्ति का पर्याय है। प्राण-शक्ति जितनी स्वस्थ, शुद्ध और संतुलित होगी, हमारा चिंतन-मनन और रहन-सहन भी उतना ही स्वस्थ, शुद्ध और संतुलित होगा। प्राण-तत्त्व आत्मा और शरीर का सेतु है ।
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