Book Title: Dhyan Sadhna aur Siddhi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 140
________________ ध्यानयोग : प्रयोग-पद्धति १२९ और कंठ से गुजरते हुए 'ओ' एवं भृकुटी-मध्य, ललाट और कपाल पर 'म्' का नाद होना चाहिए। अपने होश को पूरी तरह नाद के साथ जोड़ने पर ही यह संभव होगा। इसलिए पूर्ण सजगता, जागरूकता अत्यंत आवश्यक है । इस तरह साँस भरते-छोड़ते हुए पाँच बार सस्वर ओंकारनाद करें। शनैः-शनैः ओकारनाद को यथासंभव अधिक-से-अधिक लंबा और गहरा करने का प्रयास करें । पाँच बार इस रीति से ओंकारनाद संपन्न होने पर दो बार उच्च स्वर में ओंकार का उद्घोष करें। ओम् की पराध्वनि और उसके प्रकंपनों के प्रति अपनी सजगता और बढ़ाएँ। इस तरह ओंकार का पाँच बार सामान्य और दो बार तीव्र स्वर से उद्घोष करने के उपरान्त ओम् की अनुगूंज प्रारंभ करें । अनुगूंज ओंकारनाद का दूसरा चरण है। होंठ बन्द हों । जीभ अचल हो। केवल अंदर-ही-अंदर ओम् का गुंजारण करें। इस अनुगूंज को नासामूल/भृकृटि मध्य पर अनुभव करें और चेतना की गहराई में उतरने दें। बाहर की किसी भी ध्वनि पर ध्यान न दें, केवल अनुगूंज पर ही अपनी पूरी चेतना केन्द्रित करें। अनुगूंज भी पहले पाँच बार सामान्य स्वर में और अंत में दो बार उच्च एवं तीव्र स्वर में संपन्न कर एकदम मौन, शांत हो जाएँ। अभी कुछ समय तक ध्वनि के प्रकंपन अनुभव होंगे। अपनी सजगता को पूरी तरह अनुगूंज के प्रकंपनों पर केन्द्रित करें । नाद की परा-तरंगें जब शरीर की प्रतिरोधिगामिनी तरंगों से एकलय होती हैं, तो शरीर में शांति प्रकट होने लगती है, यही प्रथम चरण की पृष्ठभूमि है । द्वितीय चरण : सहज स्मृति इस चरण में अंदर-ही-अंदर ओम् का मानसिक जाप करते हैं। जाप में निरन्तरता और लयबद्धता होनी चाहिए, अतः ओम् के स्मरण को सहज सांस के साथ जोड़ें । एक सांस में एक बार ओम् का मानसिक जाप करें। ओम् को ही अपने चिंतन का केन्द्र बनाएं । कोई शारीरिक संवेदना, मानसिक विकल्प, विचार उभरें, तो उन पर ध्यान न दें, न ही उन्हें उठने से रोकें । उन्हें अपना काम करने दें, पर स्वयं को उनसे पृथक अनुभव करते हुए केवल ओम् पर चित्त को एकाग्र करें । दस मिनट तक इसी तरह एकाग्रचित्त होकर प्रत्येक सहज सांस के साथ निरन्तर ओम् का स्मरण पूरी समग्रता और गहराई से जारी रखें । भृकुटि मध्य पर प्रकाशमय उज्जवल ओम् की आकृति देखें । मस्तिष्क को ओम् की आवृत्तियों से भर जाने दें। इस द्वितीय चरण में मन का कोलाहल शांत होना शुरू होता है और साधक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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