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ध्यानयोग : प्रयोग-पद्धति
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प्रत्यक्ष होने लगते हैं। शरीर हल्का एवं कान्तिमय हो जाता है। आँखों की चमक विकसित होती है । भूख बढ़ती है । शारीरिक एवं मानसिक एकाग्रता का विकास होता है। चित्त की चंचलता और कषायों का शमन होता है । ज्ञान-शक्ति, मेधा, प्रतिभा का प्रस्फुटन होता है । शरीर के मोह से मुक्त होकर चैतन्य अनुभव होता है।
ध्यान-विधि
चैतन्य-ध्यान
४५ मिनट प्रार्थना, आसन, प्राणायाम के अभ्यास से ध्यान में उतरने की भूमिका बन जाती है। शरीर की जड़ता एवं मन की तंद्रिलता समाप्त होकर प्रफुल्लता का विकास होता है । हम स्थूल से सूक्ष्म की ओर अभिमुख हुए । इसी भाव-भूमि पर ध्यान का अवतरण संभव है। अतः अब साधकों को प्रातःकालीन ध्यान की साधना करनी चाहिए। चैतन्य-ध्यान में प्राणायाम, ओंकार मंत्र और आत्म-सजगता का सम्मिश्रित आधार देते हए अन्तर्यात्रा की जाती है। चैतन्य-ध्यान एक प्रकार से 'ओंकार-ध्यान' है। ओंकार बीज मन्त्र के द्वारा अन्तरमन की एकाग्रता, स्वच्छता और चैतन्य-जागरण ही चैतन्य-ध्यान का ध्येय है।
चैतन्य-ध्यान के पाँच चरण हैं
स्मात -
१. ओंकारनाद -
७ मिनट २. सहज स्मृति
१० मिनट ३. अन्तर-यात्रा -
१० मिनट ४. अन्तर्मन्थन -
३ मिनट ५. चैतन्य-बोध -
१० मिनट सर्वप्रथम ध्यान के लिए सुविधाजनक आसन (बैठने की मुद्रा) का चयन करें, जिसमें हम लगभग ४५ मिनट स्थिरता से सुखपूर्वक बैठ सकते हों । पद्मासन, सिद्धासन, वज्रासन, सुखासन ध्यान के लिए उपयुक्त हैं । सिद्धासन विशेष अनुकूल रहता है । खड़े होकर भी ध्यान किया जा सकता है । जिन्हें तंद्रा अधिक सताती हो, उन्हें खड़े होकर ही ध्यान करना चाहिए । अस्वस्थता आदि अपरिहार्य स्थितियों में लेटकर भी ध्यान किया जा सकता है, पर इसे आदत नहीं बनाना चाहिए।
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