Book Title: Dhyan Sadhna aur Siddhi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 142
________________ ध्यानयोग : प्रयोग-पद्धति १३१ पंचम चरण : चैतन्य-बोध श्वास को तीव्रतापूर्वक छोड़कर स्वयं को रिक्त कर लें और अन्तर् के शून्य में डूब जाएँ। विश्राम, परम मौन ! इस चरण में कोई क्रिया-प्रतिक्रिया, प्रयास नहीं करना है। केवल साक्षी होकर देखना है। संसार से, समाज से, परिवार से, चित्त से, कषायों से भिन्न अपने चैतन्य को देखें, अनुभव करें। स्वयं में ऊर्जा-जागरण और विद्युत-प्रकम्पनों का अनुभव होगा। कम-से-कम दस-पन्द्रह मिनट तक अपने सहज स्वरूप में निमग्न रहें। पंचम चरण की अन्तिम स्थिति है—साधक की अस्तित्वगत अशांति का सम्पूर्ण समाधान, समस्त चिन्ताओं से मुक्ति और सच्चिदानन्द स्वरूप में अन्तरलीनता, अहोदशा । जब तक यह लीनता बनी रहे, तब तक डूबे रहें। सामान्य स्थिति में आने के लिए तीन गहरे साँस लें। हथेलियों को जोर से रगड़कर हल्के से आँखों पर रखें । हाथों में प्रवाहित हो रही ऊर्जा का अनुभव करें । हाथ आँखों से हटाकर धीरे-धीरे आँखें खोलें । जो भी प्राणी या व्यक्ति सर्वप्रथम सामने नजर आए, उसे प्रभुरूप मानकर स्नेह और मुस्कान-भाव से प्रणाम अर्जित करें। भाव-उत्सव आत्मिक आनंद में डूबकर सामूहिक रूप से सस्वर ‘भाव-गीत' का पाठ करें जो मैत्री, करुणा, प्रमुदितता और समता की हम पर अमृत वृष्टि करता है। भाव-गीत परम प्रेम की रहे प्रेरणा, हृदय हमारा रोशन हो। मैत्रीभाव के मधुर गीत से, सारी धरती मधुवन हो॥ खुद जिएँ सुख से, औरों को सुख पहुँचाने का प्रण हो। हँसता-खिलता हो हर चेहरा, स्वर्ग सरीखा जीवन हो॥ दीन-दुखी जीवों की सेवा, परमेश्वर का पूजन हो। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164