Book Title: Dhyan Sadhna aur Siddhi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 141
________________ १३० ध्यान : साधना और सिद्धि के लिए आध्यात्मिक पृष्ठभूमि का निर्माण होता है । तृतीय चरण : अन्तर-यात्रा तृतीय चरण में ओम् के स्मरण के साथ श्वास की गति मंद से मंदतर करनी है। सांस धीमी हो और सहयात्री हो ओम् । इस चरण में अन्तर् मन के साथ ओम् की सहयात्रा होती है। द्वितीय चरण की तरह एक साँस के साथ एक ओम् की आवृत्ति जारी रहे, लेकिन अब सहज साँस के स्थान पर मंद साँस हो अर्थात् साँस की गति कम होती जाए। प्रत्येक साँस पर ओम् पूरी तरह फैला हुआ हो । एक भी साँस बिना ओम् को साथ लिए न आए, न जाए। लगभग पाँच मिनट तक ओम् की मंद साँस के साथ सहयात्रा जारी रहे । अन्तर-यात्रा का प्रथम भाग इस तरह संपन्न हुआ। अब सांसों की मंदगति बरकरार रखते हुए सांसों की गहराई बढ़ाएँ । सांसों के स्पन्दन ठेठ नाभि के नीचे तक भी अनुभव करें और ओम् को इस गहराई में उतारें । गहरी दीर्घ सांसों के साथ ओम् का गहरा स्मरण लगातार पाँच मिनट तक जारी रहे। __ इस चरण में ओम् अवचेतन मन में स्वतः उतरने लगता है एवं शरीर के विभिन्न चेतना-केन्द्र सक्रिय और निर्मल होते हैं। चतुर्थ चरण : अन्तर-मंथन अब श्वास-प्रश्वास को तीव्रता प्रदान करें। धीरे-धीरे साँसों की गति बढ़ाएं और प्रत्येक सांस के साथ ओम् का गहन स्मरण करें । साँसों की गति निरन्तर बढ़ाते चले जाए और उतन ही तीव्र गति से ओम् की आवृत्ति भी । ओम् और साँस, साँस और ओम् । अपने एक-एक अणु, एक-एक रोम, एक-एक स्नायु को साँसों के द्वारा ओम् की चेतना से जाग्रत करें । अनुभव करें, मानस में इस दृश्य को साकार करें कि हमारा कण-कण शुभ्र प्रकाश से चमकने लगा है और हमारे अन्तर मन के कषाय और विकार साँस के माध्यम से तीव्र गति से बाहर फैंके जा रहे हैं । तीव्र श्वास-प्रश्वास के साथ ओम् के स्मरण को अधिकतम तीन मिनट तक जारी रखें। तृतीय चरण में ओम् अवचेतन मन की गहराई में उतरता है, जबकि चतुर्थ चरण में यह अवचेतन मन को भी शान्त कर साधक को चैतन्य से भर देता है । तन-मन ऊर्जस्वित हो जाता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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