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ध्यान : साधना और सिद्धि
मनुष्य चौबीस घंटे में लगभग पचीस हजार श्वासोच्छवास लेता है । प्राणायाम का मूल उद्देश्य है प्राण को विस्तार देना । हमारी प्राण-शक्ति सध जाए तो श्वास-प्रश्वास की गति घटकर प्रतिदिन लगभग आठ-दस हजार तक लाई जा सकती है, जिसका अर्थ -अपेक्षाकृत अधिक शांत, आनन्दमय और दीर्घ जीवन । प्राणायाम इस प्राण - शक्ति को साधने का प्रयोग है ।
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हमारा श्वास-प्रश्वास स्वतः जैसा चल रहा है, उसके प्रति हमारी कोई सजगता-सचेतनता नहीं है । कई तरह की अच्छी-बुरी संवेदनाओं का मन पर प्रभाव पड़ता है, जिससे प्राणधारा असंतुलित हो जाती है । प्राणधारा के इस विचलन को समाप्त कर पुनः संयमित, संतुलित करना ही प्राणायाम है । इससे शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक तनावों से मुक्त होने में मदद मिलती है । प्राणायाम स्वस्थ, सुन्दर और सुदीर्घ जीवन की कुंजी है । यह भटकती हुई मनोवृत्तियों पर नियंत्रण स्थापित करने का उपक्रम है 1
प्राणायाम के कई भेदोपभेद हैं, लेकिन ध्यान-साधना के लिए सर्वाधिक उपयोगी नाड़ी-शुद्धि प्राणायाम है ।
विधि : सुखासन में बैठें | प्राणायाम करने के लिए हाथ की नासिका मुद्रा बनाएं । तर्जनी और मध्यमा अंगुली को हथेली की तरफ मोड़ दें । अंगूठा और अनामिका तथा कनिष्ठा अंगुली खुली रहे । दायीं नासिका को बन्द करने के लिए अंगूठे का और बायीं नासिका को बन्द करने के लिए कनिष्ठा और अनामिका अंगुली का प्रयोग करें । बाएं से साँस भरें, दाएं से छोड़ दें। फिर दाएं से साँस भरें, बाएं से छोड़ दें ।
रेचक का समय पूरक से कम-से- -कम दो गुना या इसके गुणनफल में हो अर्थात् साँस छोड़ने का समय साँस भरने के समय से दो गुना अथवा ज्यादा हो ।
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यह नाड़ी-शुद्धि का एक चक्र है, इसे नौ बार दोहराएँ । साँस भरते हुए उसकी शीतलता और छोड़ते हुए ऊष्मा का अनुभव करें ।
खाली पेट, शौच से निवृत्त होकर सूर्योदय से पूर्व या सूर्यास्त के पश्चात् इसका अभ्यास करें । जो लोग योगाभ्यास के लिए समय न निकाल पाएँ, वे नाड़ी शोधन प्राणायाम अवश्य ही कर लें ।
लाभ : तीन से छह माह के निरन्तर एवं मनोयोग पूर्ण अभ्यास से इसके लाभ
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