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नौवीं मुद्रा : पर्वतासन
साँस छोड़ते हुए हथेलियों को सामने फैलाकर जमीन पर रखें। पैरों को सीधा करें। कमर को धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठाएँ । हाथ और पाँव के बल पर्वताकार में स्थिर हों । एड़ियों को जमीन पर लगाने का प्रयास करें ।
दसवीं मुद्रा : अश्व संचालन - आसन
यद्यपि यह तीसरी मुद्रा की पुनरावृत्ति है, किन्तु इसमें दायाँ पैर दोनों हाथों के बीच रहेगा और बायाँ पैर पीछे की और फैला हुआ ।
ग्यारहवीं मुद्रा : पादहस्तासन
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यह दूसरी मुद्रा की स्थिति है । पाँव के अंगूठे से हाथ की अंगुलियाँ स्पर्श करें और सिर घुटनों को ।
बारहवीं मुद्रा : हस्त उत्तान आसन
साँस भरते हुए धीरे-धीरे सीधे खड़े हों, हाथों को आसमान की ओर उठाकर पहली मुद्रा संपन्न करें ।
ध्यान : साधना और सिद्धि
नमस्कार - मुद्रा में खड़े हों । परमात्मा का स्मरण करें और हाथों की अंगुलियों को कमल की पंखुरियों की तरह फैलाएँ । बड़े प्रेम और अहोभाव के साथ यह श्रद्धा-सुमन परम पिता परमात्मा को समर्पित करें ।
५. शवासन
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आसनों के बाद शवासन किया जाना चाहिए। यह योगाभ्यास की पूर्णाहुति
पीठ के बल चित लेट जाएँ । गर्दन अपनी सुविधानुसार दाँये या बायें निढ़ाल छोड़ दें। पैरों के बीच एक फुट की दूरी हो । जाँघों, पिंडलियों और पंजों में कोई तनाव
न रहे । दोनों हाथों को शरीर से थोड़ा दूर रखें। हथेलियाँ आसमान की ओर खुली हुई
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हों । आँखें बंद |
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शरीर से अपनी पकड़ को छोड़ें। पूरे शरीर को मानसिक रूप से देखें । शरीर के कौन-कौन से अंग विशेष तनावग्रस्त हैं, उन्हें देखें, अनुभव करें और ढीला छोड़ें।
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