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________________ १२४ नौवीं मुद्रा : पर्वतासन साँस छोड़ते हुए हथेलियों को सामने फैलाकर जमीन पर रखें। पैरों को सीधा करें। कमर को धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठाएँ । हाथ और पाँव के बल पर्वताकार में स्थिर हों । एड़ियों को जमीन पर लगाने का प्रयास करें । दसवीं मुद्रा : अश्व संचालन - आसन यद्यपि यह तीसरी मुद्रा की पुनरावृत्ति है, किन्तु इसमें दायाँ पैर दोनों हाथों के बीच रहेगा और बायाँ पैर पीछे की और फैला हुआ । ग्यारहवीं मुद्रा : पादहस्तासन 1 यह दूसरी मुद्रा की स्थिति है । पाँव के अंगूठे से हाथ की अंगुलियाँ स्पर्श करें और सिर घुटनों को । बारहवीं मुद्रा : हस्त उत्तान आसन साँस भरते हुए धीरे-धीरे सीधे खड़े हों, हाथों को आसमान की ओर उठाकर पहली मुद्रा संपन्न करें । ध्यान : साधना और सिद्धि नमस्कार - मुद्रा में खड़े हों । परमात्मा का स्मरण करें और हाथों की अंगुलियों को कमल की पंखुरियों की तरह फैलाएँ । बड़े प्रेम और अहोभाव के साथ यह श्रद्धा-सुमन परम पिता परमात्मा को समर्पित करें । ५. शवासन 1 आसनों के बाद शवासन किया जाना चाहिए। यह योगाभ्यास की पूर्णाहुति पीठ के बल चित लेट जाएँ । गर्दन अपनी सुविधानुसार दाँये या बायें निढ़ाल छोड़ दें। पैरों के बीच एक फुट की दूरी हो । जाँघों, पिंडलियों और पंजों में कोई तनाव न रहे । दोनों हाथों को शरीर से थोड़ा दूर रखें। हथेलियाँ आसमान की ओर खुली हुई I हों । आँखें बंद | 1 1 शरीर से अपनी पकड़ को छोड़ें। पूरे शरीर को मानसिक रूप से देखें । शरीर के कौन-कौन से अंग विशेष तनावग्रस्त हैं, उन्हें देखें, अनुभव करें और ढीला छोड़ें। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003863
Book TitleDhyan Sadhna aur Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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