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ध्यानयोग : प्रयोग-पद्धति
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तीसरी मुद्रा : अश्व-संचालन-आसन
हाथों को जमीन पर ही रखें । साँस भरते हुए दायें पैर को पीछे की ओर ले जाएँ और घुटनों को जमीन का आधार दें। बायें पाँव की जंघा को पिंडली से जोड़ें। बायां पाँव दोनों हथेलियों के बीच हो । दृष्टि ऊपर की ओर हो । बैठक को नीचे की ओर दबाव दें। चौथी मुद्रा : तुला-आसन
तीसरी मुद्रा में बायाँ पैर जो आगे रहा, उसे पीछे फैलाकर दायें पैर के पास ले जाएँ और हाथ-पाँव के बल शरीर को सीधा रखें । तराजू की झुकी हुई स्थिति। पाँचवीं मुद्रा : शशांक-आसन
पंजों और घुटनों के बल बैठ जाएँ वज्रासन में । फिर धीरे-धीरे हाथों को ऊपर उठाकर सिर तथा हाथ को सीधे जमीन से स्पर्श करें । सिर दोनों हाथों के मध्य रहेगा तथा ललाट भूमि पर । दोनों नितम्ब एड़ियों पर टिके रहेंगे। छठी मुद्रा : साष्टांग प्रणाम-आसन
पेट के बल उल्टा लेट जाएँ, हाथ सीधे सामने की ओर रखें । शरीर पूरा ढीला रखें । गर्दन को सीधा करें, ललाट जमीन से स्पर्श हो और प्रणाम-भाव के साथ तीन गहरी साँस लें। सातवीं मुद्रा : भुजंगासन
दोनों हथेलियों को पसलियों के पास धरती पर टिकाकर कन्धे और नाभि के हिस्से को साँस भरते हुए ऊपर की ओर उठाएँ-नागफन की तरह । आठवीं मुद्रा : धनुरासन
जमीन पर उल्टा लेट जाएँ । पैरों को घुटने से कमर की ओर मोड़ें। हाथों से पैरों को टखनों के पास पकड़ें। शरीर को दोनों ओर से भीतर खींचने का प्रयास करें। सिर ऊपर की ओर उठाएँ।
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