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ध्यान ः साधना और सिद्धि
को जला सकता है, मेरी ओर से सौ दीए जल गए, तो वे सौ दीए हजारों-हजार दीयों को जागृत करने में, उन्हें चैतन्य करने में निमित्त बन जाएँगे । तुम ऐसे निमित्त बनो । सृष्टि की यह महान सेवा होगी । पृथ्वी तुम्हारी आभारी रहेगी।
हम सभी अंधकार की कोख से पैदा होते हैं, लेकिन हममें से कुछ सौभाग्यशाली होते हैं, जो प्रकाश की ओर बढ़ जाते हैं; शेष, अंधकार में ही खो जाते हैं, अंधकार की ओर ही बढ़ते रहते हैं। कुछ अच्छे वातावरण में, ऊँचे कुल में, अच्छे संस्कारों के प्रकाश में पैदा होते हैं, इसके बावजूद अपना जीवन अंधकार की ओर ले जाते हैं । कुछ की जाति-पांति का भी पता नहीं होता, पर वे महान कर्म के स्वामी हो जाते हैं । जीसस किसी ऊँचे कुल के व्यक्ति नहीं रहे, पर ऊँचा तो आदमी कुल से नहीं, अपने आप से होता है । कबीर जाति के जुलाहे, गोरा जाति के कुम्हार, रैदास जाति के मोची, गांधी जाति के वैश्य, पर वे जाति के कर्म से ऊपर उठे और अपने कर्म के बलबूते सारे विश्व के हो गये। यह दुनिया उन सिंह-पुरुषों और सत्-पुरुषों को याद करती है, उन प्रकाश-पुंजों से सदा प्रेरणा लेती है जो प्रकाश में पैदा होते हैं और प्रकाश की ओर ही बढ़ते जाते हैं । अंधकार की ओर बढ़ना सरल है, क्योंकि हम अंधकार के आदी हैं। लेकिन प्रकाश की खोज करना, प्रकाश की ओर बढ़ना कठिन है, पर यथार्थ यह है कि प्रकाश-पथ का अनुगमन करना ही जीवन की साधना है।
कल एक महाशय का पत्र था जिसे उन्होंने राजस्थान पत्रिका में मेरे एक लेख को पढ़कर लिखा है । लेख में मैंने ‘मार' और 'राम' के संबंध में लिखा था। 'राम' की उलटी शब्द-संयोजना है ‘मार' और 'मार' की उलटी शब्द-संयोजना है 'राम' । बौद्ध पिटकों में कामदेव को 'मार' की संज्ञा दी गई है। कहा जाता है कि बुद्ध को मार ने बहुत परेशान करना चाहा, पर अंततः बुद्ध जीत गए । मार अर्थात् काम । जो मार को मारने की हैसियत रखता है वही राम को जी सकता है । उस सज्जन ने लिखा, प्रभु ! मैं राम को तो पाना चाहता हूँ, पर मार को छोड़ना नहीं चाहता । वह दो नावों पर एक साथ सवारी करना चाहता है । एक पाँव इस नाव में दूसरा पाँव दूसरी नाव में, अब वह मंझधार में नहीं डूबेगा तो क्या होगा । उसकी वही स्थिति होगी कि घर से निकला बाजार के लिए और बाजार न पहुँचा और बाजार से घर की ओर चला तो घर का पता लापता हो गया।
जीवन में एक निश्चित निर्णय होना चाहिए। तुम मार को जीना चाहते हो, उसमें रमना चाहते हो तो खूब रमो, प्रेम से रमो और जिस दिन मार से ऊब होने लग जाए, राम की ओर बढ़ जाना । आखिर कब तक संसार में लिप्त रह सकोगे। कभी तो
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