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उत्तर मिलता हैं 'सूर्य के प्रकाश में ।'
अगर सूर्यास्त हो गया हो तो ।'चांद के प्रकाश में ।'
'अगर चाँद भी न हो, अमावस की रात हो तो किसके प्रकाश में जिएँ ।
'अपने आँगन में एक दीप जला लो ।'
'दीपक के प्रकाश की भी व्यवस्था न हो तो । हम अनजानी राह पर चल रहे हों और दीपक या कंदील की व्यवस्था न हो पाए तो क्या करें ।'
ध्यान : साधना और सिद्धि
याज्ञवल्क्य ने कहा 'जब जीवन में कोई भी ज्योति दिखाई न दे, तब अपनी आत्मा की ज्योति के प्रकाश में अपने जीवन-पथ पर बढ़ो ।'
तब फिर प्रश्न उठा कि 'भगवान् वह आत्मा की ज्योति कहाँ रहती है ।' 'मनुष्य के अंतर हृदय में ' - याज्ञवल्क्य ने रहस्य उद्घाटित किया ।
महर्षि रमण से पूछा गया कि आपको ईश्वरीय ज्योति से साक्षात्कार हुआ, अन्तर-प्रकाश मिला, कहाँ मिला ? रमण ने कहा, 'अपने ही अन्तर हृदय में ।' बुद्ध से भी पूछा गया कि जिन क्षणों में आपको बोधि का प्रकाश उपलब्ध हुआ, उसकी लौ सबसे पहले कहाँ जगमगाई । बुद्ध ने भी 'अंतर हृदय' ही कहा । महावीर ने कहा कि कैवल्य का प्रकाश मेरे अंतर हृदय में उमड़ा । अन्तर- हृदय मनुष्य की महागुफा है। ऐसी गुफा जो जीवन के अनूठे रहस्यों से भरी है । यह मनुष्य की अन्तस्- चेतना की महागुफा है । जीवन का परम सत्य इसी महागुफा में स्थित है । मनुष्य का अन्तर हृदय ही चेतना की महागुफा है ।
हम मन को, बुद्धि को उलटें हृदय की ओर । अब तक मन से सोचा, अब हम मन को हृदय की गंगा में स्नान कराकर सोचें । हम हृदय से सोचें । मन ज्यों ही हृदय में निमग्न होगा, उसकी चंचलता और उच्छृंखलता तिरोहित हो जाएगी । तनाव और घुटन से मुक्त होने का रास्ता है - हृदय में डुबकी । तुम हृदयवान हो जाओ, तो जगत तुम्हारे लिए बहुत सुकोमल हो जाएगा। तुम स्वतः मध्यस्थ और तटस्थता के भाव में स्थित हो जाओगे । मन का अहं स्वतः विगलित हो जाएगा । अनिद्रा सताती हो, तो भी यह चमत्कारी मंत्र है कि तुम हृदय में ध्यान धरते हुए सोओ। बहुत आराम से नींद आएगी । अनिद्रा क्या है मन की अस्वस्थता और निद्रा क्या है स्वस्थ मन द्वारा लिया
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