Book Title: Dhyan Sadhna aur Siddhi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 107
________________ ध्यान : साधना और सिद्धि निकलना हो जाए तो एक झलक उसे भी मिल जाए। वह कोई महास्वरूप नहीं चाहता । केवल एक झलक कि उसका जीवन आनन्द से भर जाए । ९६ इच्छा केवल रजकण में मिल, तब चरणों के निकट पहूँ । आते-जाते कभी तुम्हारे, श्री चरणों से लिपट पइँ । 1 ताकि लोहा-लोहा न रहे तुम्हारे श्री चरणों के पारस से सोना हो जाए । क होगा यह, हरि-इच्छा । हम तो जन्मों तक तुम्हारी प्रतीक्षा करते रहेंगे और यही प्रार्थना करेंगे कि आओ और यही वर दो कि मेरा हृदय स्फटिक की भाँति स्वच्छ और निर्मल हो जाए ताकि तेरा सभी कुछ मेरे हृदय से प्रतिबिम्बित हो सके । जो भी कुछ करूँ तेरे लिए करूँ । खाऊँ-पीऊँ सो सेवा, उठूं- बैठूं सो परिक्रमा । मेरा खाना पीना, तुम जो भीतर विराजित हो उसके लिए अर्घ्य है । इसलिए शुद्ध खान-पान लेता हूँ क्योंकि तुम्हें अशुद्ध वस्तुएँ कैसे समर्पित कर सकता हूँ । हाँ, अगर हम सभी के भीतर यह भाव हृदयंगम हो जाए कि जो भी कर रहे हो वह परमात्मा के लिए है तो कभी गलत काम नहीं कर सकोगे । हम अशुद्ध खान पान की ओर प्रवृत्त नहीं होंगे। दुर्व्यसनों का सेवन नहीं कर पाएँगे । I क्या हम किसी मंदिर में सिगरेट का नैवेद्य चढ़ाते हैं ? क्या हम भगवान के आगे फूलों के नाम पर जर्दा-तम्बाकू समर्पित करते हैं? हम दूध और पंचामृत से अभिषेक करते हैं या शराब-बीयर से ? भला, जब हम भगवान को फल-फूल - दूध समर्पित करते हैं, तो फिर स्वयं शराब -सिगरेट, तम्बाकू-गुटके का उपयोग क्यों करते हैं ! आखिर, हमें यह समझ कब आएगी कि जीवन स्वयं एक मंदिर है । अभी तुमने परमात्मा को मंदिर-मस्जिद गिरजा से ही जोड़ा है । तुम्हारा शरीर स्वयं उसका मंदिर है, तुम्हारे हृदय में ही तुम्हारा हृदयेश्वर है, जिस दिन तुम्हारी यह दृष्टि बन जाएगी, तुम्हारा तुम्हारे जीवन के प्रति रवैया बदल जाएगा । तब तुम्हारा उठना-बैठना भी उसी की परिक्रमा होगा और खाना-पीना भी देवता को अर्घ्य चढ़ाना । अभी तुमने परमात्मा का अनुभव नहीं किया है । तुम केवल शरीर का अनुभव करते हो । थोड़ा-सा गहराई में उतरो, शरीर से ऊपर उठो और भावों में परमात्मा का अवगाहन करो । तुम्हारी आदतें जो तुम छोड़ना चाहते हो उन्हें प्रभु को समर्पित कर दो और संकल्प लो कि जब भी व्यसन हावी हों या गलत रास्ते जाओ तुम कहोगे यह भी परमात्मा के लिए है । परमात्मा का स्मरण आते ही तुम्हारी चेतना गलत कार्यों की ओर प्रवृत्त नहीं हो पाएगी । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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