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मुक्ति हो, मृत्यु नहीं
१०५ कह सकें कि देखो बेटा मैंने इस ढंग से जीवन जिया और यह पाया या अमुक-अमुक नतीजा निकाला और इन परिणामों की सौगात तुम्हें सौंपना चाहता हूँ। मेरे अनुभव तुम्हारे लिए विरासत हैं। अब यह तुम्हारे ऊपर है कि तुम इन्हें चाहो तो स्वीकार करो या अस्वीकार । लेकिन माया और मूढ़ता इतनी गहरी है कि कोई किसी को कहता नहीं, कोई किसी को समझाता नहीं। हाँ, अगर कोई समझाए तो हम समझना भी नहीं चाहते क्योंकि जितनी मूढ़ता दादा में थी, पोता भी वैसा ही मूढ़ है ।
ऐसा ही हुआ। एक पिता ने पुत्र से कहा, 'बेटा मैंने विवाह किया और उसका कुछ सुखद परिणाम न निकला । तू ध्यान रखना, अपने जीवन में कभी विवाह न करना।
पुत्र ने कहा, पिताजी आप जो शिक्षा मुझे दे रहे हैं, वही मैं अपनी आने वाली पीढ़ी को भी दूंगा।
मूर्छा गहरी है और जब तक मूर्छा के लंगर न खुलें, तब तक जीवन की नौका मुक्ति की ओर कैसे बढ़ेगी । यह तो केवल मृत्यु की ओर बढ़ सकती है । मनुष्य केवल संग्रह करता रहता है, जीवन के बारे में कोई बोध नहीं जगता । जीवन के लिए किसी के पास व्यवस्था नहीं है । बस जिए चले जा रहे हैं । जैसे-तैसे । जीवन का बोध तब तक नहीं जगता, जब तक कि उसे मृत्यु का घंटनाद सुनाई नहीं देता।
एक प्रसिद्ध झेन संत हुए हैं— ईक्यू । संत ईक्यू सम्राट का पुत्र रहा था। जब वह बहुत छोटा था, उसकी माँ ने महलों का त्याग कर दिया था और स्वयं के सच्चे स्वरूप का बोध पाने के लिए उसने झेन-परम्परा में संन्यास ले लिया था। इसी कारण ईक्यू भी झेन-मन्दिर में अध्ययन के लिए आया करता । माँ साध्वी ने अपनी मृत्यु से पहले ईक्यू को पत्र लिखा था। वह पत्र ही ईक्यू के भविष्य का निर्माता बना।
माँ ने पत्र में लिखा, ईक्यू ! मैं इस जीवन में मेरे कार्य पूर्ण कर चुकी हूँ और मैं दिव्य लोक की ओर, एटर्निटी की ओर लौट रही हूँ । मैं चाहती हूँ तुम एक बहुत अच्छे झेन विद्यार्थी बनो और अपने बुद्ध-स्वभाव का अनुभव करो । ऐसा करके ही तुम जानोगे कि मैं तुम्हारे साथ हूँ या नहीं । तुम ताज्जुब करोगे कि बुद्ध ने उनचास वर्ष तक उपदेश दिया, और उस सारी अवधि में उन्होंने पाया कि एक भी शब्द बोलना आवश्यक नहीं है । तुम्हें जानना चाहिए कि आखिर क्यों? माँ ने लिखा, अवाइड थिंकिंग फ्रूटलेसली । तुम अर्थहीन सोचना बन्द कर दो । तुम प्रकाश को उपलब्ध होओगे । भगवान के उपदेश स्वयं के ज्योतिर्मय होने के लिए ही है । इस ज्योतिर्मयता को अर्जित करना तुम पर निर्भर
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