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ध्यानयोग : प्रयोग-पद्धति
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णमो आयरियाणं
णमो उवज्झायाणं
णमो लोए सव्व साहूणं। एसो पंच णमुक्कारो, सव्व पावप्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेसिं, पढम हवई मंगलं ।*
गायत्री-महामंत्र ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
नमन-सूत्र ओंकार बिन्दु-संयुक्तं, नित्यं ध्यायन्ति योगिनः । कामदं मोक्षदं चैव, ओंकाराय नमो नमः ।। अज्ञान-तिमिरान्धानाम्, ज्ञानांजन-शलाकयाः। चक्षुरुन्मीलितं येन, तस्मै सद्गुरवे नमः ॥ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःख भागभवेत् ।। ध्यान-भावना की समृद्धि के लिए हम जीवन-गीत गाएँ । (जीवन-गीत का भावार्थ हृदय में उतारते हुए सस्वर पाठ करने से आध्यात्मिक संकल्प और अहोभाव का विकास होता है, ध्यान में उतरने की भावनात्मक भूमिका निर्मित होती है ।)
जीवन-गीत मानव स्वयं एक मंदिर है, तीर्थ रूप है धरती सारी। मूरत प्रभु की सभी ठौर है, अन्तरदृष्टि खुले हमारी ॥ जीवन का सम्मान करें हम,
जीवन में भगवान् निहारें। * भावार्थ : अर्हत्, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधुजनों को नमस्कार हो, जो पाप-विनाशक और प्रथम मंगल-रूप है।
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