Book Title: Dhyan Sadhna aur Siddhi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 130
________________ ध्यानयोग : प्रयोग-पद्धति ११९ एवं रक्त-संचार में कोई बाधा न हो, क्योंकि ये ही हमारे संजीवन-शक्ति के संचार के माध्यम हैं।) अतः ध्यान से पहले सुबह थोड़ा योगाभ्यास करना आवश्यक है । योगाभ्यास को हम निम्न पाँच चरणों में पूरा करेंगे१. संधि संचालन - ३ मिनट २. स्थिर दौड़ २ मिनट ३. योगासन ३ मिनट ४. योगचक्र ४ मिनट ५. शवासन ३ मिनट १. संधि-संचालन शरीर में गर्दन, कंधे, कोहनी, कलाई, कमर, घुटने, टखने, अंगुलियों के जोड़-मुख्य संधि-स्थल हैं। दैनंदिन क्रिया-कलापों में इन संधि-स्थलों के अनियमित उपयोग के कारण इनमें जकड़न पैदा हो जाती है, जो शारीरिक स्थिरता और स्वस्थता में बाधक है । इन संधि-स्थलों के मुक्त संचालन के लिए हम निम्न व्यायाम करें (क) पद-संधि संचालन : नीचे बैठ जाएँ । दोनों पैरों को सामने की तरफ फैला लें। हाथों को घुटनों पर रखें । रीढ़ की हड्डी और गर्दन सीधी हो । पैर के पंजों को मिलाकर तीन-तीन बार आगे-पीछे झुकाएँ । तत्पश्चात् दोनों पंजों को तीन बार दाहिनी ओर से बायीं ओर तथा तीन बार बायीं ओर से दाहिनी ओर गोल घुमाएँ । (ख) हस्त-संधि संचालन : हाथों को जमीन के समानान्तर सामने की तरफ फैलाएँ । हथेलियों और अंगुलियों को पूरा खोलें । अब अंगुलियों के प्रत्येक जोड़ पर जोर डालते हुए, मुट्ठियाँ कसते हुए सीने की तरफ ले जाएँ । मुट्ठियाँ खोलते हुए पुनः हाथ फैलाएँ । तीन-तीन बार इस क्रिया को दोहराएँ। हाथों को पूर्ववत् फैला रहने दें। मुट्ठियाँ बंद करें । कलाई के जोड़ों को धीरे-धीरे गोल घुमाएँ । तीन बार दाहिनी तरफ से, तीन बार बायीं तरफ से । ध्यान रहे, हाथ सीधे रहें। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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