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ध्यानयोग : प्रयोग-पद्धति
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और धीरे-धीरे कम करें । ध्यान रहे पाँवों की पिंडलियाँ जंघाओं से स्पर्श करें।
अब हम सुगमतापूर्वक कुछ योगासन कर सकते हैं। ३. योगासन
योगासनों में शरीर की प्रत्येक यौगिक क्रिया को सहजता और तन्मयता से किया जाता है और पूरी प्रक्रिया में श्वास-प्रश्वास पर ध्यान केंद्रित रखा जाता है । हम निम्न योगासन संपादित करें
(क) अर्द्ध-कटि चक्रासन : पाँवों को एक-दूसरे से सटाकर सावधान-मुद्रा में खड़े हो जाएँ। साँस भरते हुए दायीं बाँह ऊपर उठाएँ । कंधे की सीध पर हाथ के आते ही हथेली को ऊपर की ओर मोड़ें; फिर बाँह को ऊपर उठाते हुए कान से चिपका लें। ऊपर खिंचाव दें। अब धीरे-धीरे कमर से बायी ओर झुकें । बायीं हथेली को बायें पैर के घुटने से जितना नीचे संभव हो, ले जाएँ । झुकते हुए साँस छोड़ें। ध्यान रहे कोहनी और घुटने मुड़ने नहीं चाहिए । सामान्य रूप से साँस लेते हुए अपनी सामर्थ्य के अनुसार आसन की स्थिति में रहें, फिर धीरे-धीरे साँस भरते हुए सीधे हों, दायाँ हाथ नीचे ले आएँ । अब यही क्रिया बाई ओर से दाई ओर झुककर करें। पूरे आसन के दौरान रक्त-प्रवाह में आते परिवर्तन पर ध्यान रखें।
(यह आसन रीढ़ को स्वस्थ और लचीला बनाता है । पाचन क्रिया को सुधारता है । स्नायुओं को सक्रिय करता है।)
(ख) त्रिकोणासन : सीधे खड़े हो जाएँ । दोनों पैरों के बीच लगभग एक मीटर की दूरी रखें । दोनों हाथों को कंधों के समानान्तर दाएं-बाएं फैलाएँ । साँस भरें। साँस छोड़ते हुए धीरे-धीरे सामने झुकते हुए दायें हाथ से बाएं पाँव के अंगूठे को स्पर्श करें । बायाँ हाथ ऊपर आसमान की ओर उठेगा । गर्दन को ऊपर की ओर घुमाते हुए दृष्टि को बाएँ हाथ की हथेली पर स्थिर करें । सामान्य साँस लेते हुए सामर्थ्य भर आसन की स्थिति में रुकें । घुटने नहीं मुड़ने चाहिए। धीरे-धीरे सामान्य स्थिति में आ जाएँ। फिर इसे बाई तरफ से दोहराएँ।
(यह आसन जांघ, पीठ, पेट और पैर के तलओं की मांस-पेशियों के लिए उत्तम व्यायाम है । मधुमेह, किडनी, लीवर और आमाशय के रोगों पर इससे नियन्त्रण होता है । सम्पूर्ण देह में ऊर्जा और स्फूर्ति का संचार होता है।)
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