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मुक्ति हो, मृत्यु नहीं
१०९ नहीं चलता। मृत्यु का बोध ऐसा ही है कि मन की सारी कल्पनाएँ, सारे सपने धरे रह जाते हैं। वह चिंता में पड़ जाता है कि अब क्या होगा।
बेहोशी की स्थिति में युवक को भगवान के पास लाया गया। पानी के छीटे देने पर उसे होश आता है । वह बुद्ध के चरणों में गिरकर रोने लगता है कि प्रभु मुझे बचाओ, अब मेरा क्या होगा। आपने कहा कि मेरी मृत्यु होने वाली है। आपका वचन कभी व्यर्थ नहीं जाता है, आपने अपने ज्ञान में देखा है, प्रभु मुझे बचाओ।' बुद्ध ने कहा, 'वत्स, मृत्यु व्यक्ति की नहीं होती, मृत्यु केवल सपनों की होती है । मृत्यु मन के मायाजाल
और कल्पनाओं की होती है । जिसकी मृत्यु होती है वह सत्य नहीं होता । घबराओ नहीं, सपने मरा करते हैं, सत्य कभी नहीं मरता । तुम्हारा जीवन अभी सात दिन और शेष है, अगर तुम चाहो तो तुम्हारा जीवन कोरी मृत्यु नहीं होगा, अपितु निर्वाण के महामार्ग की ओर बढ़ा हुआ महाजीवन हो जाएगा। तुम व्यर्थ की कल्पनाओं के इन्द्रधनुष हटा दो और बढ़ चलो निर्वाण के महापथ की ओर ।' और कहा जाता है छः दिन बीत गए और मृत्यु आई उसे ले जाने के लिए। लेकिन मृत्यु पहुँचे उसके पूर्व ही मुक्ति का महामहोत्सव हो गया, निर्वाण उसके जीवन को प्रकाशित कर गया।
भगवान करे हमारे जीवन में मृत्यु आए, उससे पहले हमारी मुक्ति हो जाए, निर्वाण का महोत्सव उतर आए । निश्चय ही मृत्यु से कोई बच नहीं सकता, लेकिन चाहे तो खुद ही मृत्यु को मार सकता है। तुम मृत्यु को नहीं, मुक्ति को जियो । तुम्हारे एक ओर मृत्यु बढ़ रही है, दूसरी ओर मुक्ति । यह तुम्हें चयन करना है कि तुम किस ओर अपना कदम उठाना चाहते हो । मृत्यु भी तुम्हारा निर्णय है और मुक्ति भी। मृत्यु तो अपने आप हो जाएगी, पुरुषार्थ मुक्ति के लिए करना है, मृत्यु के भय से मुक्त होना है।
__ मुक्ति को जीने का पहला सूत्र है—मृत्यु-बोध । हमें मृत्यु का बोध रहे । मैंने कहा, मृत्यु-बोध; लेकिन इससे भी बढ़कर जरूरी है जीवन-बोध । हमें जीवन-तत्त्व' का प्रतिपल बोध रहे । मृत्यु-बोध असार को समझने के लिए और जीवन का बोध सार को उपलब्ध करने के लिए। ध्यान रहे, मृत्यु न मंगलकारी है और न अमंगलकारी है। यह न हमारे लिए अभिशाप है, न वरदान । यह तो जीवन के नाटक का पटाक्षेप है । मुक्ति पाने की नहीं, जीने की बात है । मुक्ति को पाने की आकांक्षा नहीं, इसे जीने की अभीप्सा हो । मुक्ति को जीने के लिए जीवन मस्ती से, आनन्द से भरपूर हो । मस्ती ऐसी कि खाने में कुछ भी मिल जाए, प्रेम से ग्रहण कर लें । मस्ती ऐसी कि कोई एक गाल को चाँटा दिखा दे तो दूसरा गाल भी चाँटा खाने को तैयार रहे । मस्ती ऐसी कि कोई पीठ
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