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जीवन जिएँ अन्तर्हृदय से
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मन परमात्मा को भीतर पा लेता है तब उसे बाहर के कण-कण में परमात्मा की अनुभूति होने लगती है । लेकिन तुमने अपने भीतर के परमात्मा को नहीं पहचाना तो बहुत मुश्किल है कि बाहर के परमात्मा को पहचान पाओ । तब होगा यह कि किसी भी धर्मस्थान पर जाकर वापस लौट आओगे कि हो गई यात्रा, पर परमात्मा नहीं मिल पाएगा । जब तुम्हें स्वयं में भगवान दिखाई नहीं देता तब कहीं और दिख जाए इसमें आशंका है।
आएं हम अपने अन्तर् हृदय में; डूबें, जिसमें वह व्याप्त है, सम्पूर्ण अस्तित्व का बीज जिसमें समाया हुआ है। भगवान करे हम सब हृदयवान बनें, हृदय के होकर हृदय से जियें, जीवन अमृत होगा ।
हम एक माह के लिए ही सही, एक प्रयोग करें। हम दस मिनट के लिए मन और बुद्धि की धारा को हृदय में उतारते हुए हृदय में स्थित हों । हृदय में ध्यान धरें । हृदय में सघन हुई ऊर्जा को अगले चरण में ऊर्ध्व मस्तिष्क की ओर उठने दें और ऊर्ध्व मस्तिष्क में व्याप्त हो जाएँ। इससे हमारी ज्ञान चेतना भी मुखर और प्रखर होगी । हम उन्नत मस्तिष्क के स्वामी बनेंगे । लगभग दस मिनट की यह व्याप्ति रहे । अगले दस मिनट के लिए मुक्त आकाश की ओर उठें और अपनी एवं अस्तित्व की चेतना को एकाकार होने दें। फिर पाँच मिनट विश्राम की स्थिति में रहें । अस्तित्व की ऊर्जा को अपने पर बरसने दें । आप पाएँगे, आप सचमुच नये हो चुके हैं, प्रमुदित और ऊर्जस्वित हो चुके हैं। आपमें आपकी तेजोमयता का जागरण और विस्तार हुआ है, यह हृदय से अस्तित्व तक की यात्रा है और अस्तित्व से हृदय तक की ।
हृदय ही मार्ग है, हृदय ही मंजिल है । जहाँ से शुरुआत है, अन्त में वहीं विश्राम है । हम जीवन जिएँ अन्तरहृदय से । हृदयवान ही प्रेम, शांति, करुणा को जी सकता है । वही मंगल मैत्री और निर्मल दृष्टि का स्वामी होता है । वही होता है सत्य - शिव - सौन्दर्य का स्वामी । नये युग के लिए बस एक ही सार-संदेश : जिओ हृदय से, प्रेम से, आनंद से
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मंगलमय जीवन हो ।
सत्यम् शिवम् सुन्दरम् सबके जीवन का दर्शन हो ||
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कोई नहीं पराया, धरती को अपनाएँ ।
सारी
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