Book Title: Dhyan Sadhna aur Siddhi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 103
________________ ९२ ध्यान : साधना और सिद्धि छल-कपट, पाप-प्रपंच भरा है । क्या ऐसी स्थिति देख पा रहे हो कि तुमने पुकारा और भगवान चले आएं । भोला भंडारी भोला जरूर कहलाता है, पर वह इतना भोला भी नहीं है । मन मनुष्य का रोग है और हृदयशील होना मन के रोग का समाधान है । जब तक मन में जकड़े हो, तब तक क्रोध, काम, विकार, लोभ, लालच, आसक्ति, परिग्रह में उलझे रहोगे । अन्तर में झाँककर धीरज से देखोगे तो जानोगे कि अपना मन कैसा है । 1 क्या मन में मनुष्य का जन्म हो गया है या वानर ही कुलांचे भर रहा है । मनुष्य अभी मनुष्य रूप में पैदा हुआ ही कहाँ है, आकृति मनुष्य की हो गई, प्रकृति तो अभी भी पशु की ही है । मनुष्य का विकास वानर से नहीं हुआ। मनुष्य अभी भी वानर ही है । मनुष्य को पैदा होना शेष है । मन मनुष्य हो जाए, तो मनुष्यत्व सार्थक हो । हमारे मन को लोभ के कब्ज ने जकड़ लिया है । जब कब्जियत हो जाती है तो सारा ध्यान कब्ज पर टिक जाता है और शरीर रोगी हो जाता है । स्वस्थ होने के लिए पेट का मल निकलना जरूरी है । ठीक उसी तरह स्वस्थ मन के लिए लोभ का बाहर निकलना जरूरी है । स्वस्थ जीवन के लिए मन का स्वस्थ होना अनिवार्य पहलू है । 1 मैं देखा करता हूँ कमल और कीड़े को, जो दोनों कीचड़ में उत्पन्न होते हैं, लेकिन एक ऊपर उठ जाता है, दूसरा उसी में धँस जाता है । हमारी स्थिति भी क्या उसी कीड़े जैसी है कि हम संसार के कीचड़ में फँसते ही चले जाते हैं। देखता हूँ मकड़ी जाला बुनती है, दूसरों को फँसाने के लिए, लेकिन एक दिन खुद ही अपने जाले में उलझ जाती है । क्या हमारा मन भी जाल नहीं बुन रहा है, दूसरों को फँसाने के लिए ? लेकिन होता यह है कि हम ही जाल में फँसकर रह जाते हैं । हमारा मन लोभी है, लालची है । क्रोध का सर्प फुंफकारता ही रहता है । इसलिए जब तक मनुष्य के मन में बैठा हुआ पशु, उसके भीतर बसा शैतान जब तक मनुष्य से अलग नहीं होगा, तब तक मनुष्य का जन्म हो ही कैसे सकता है । हम अपने ही मन की कमजोरियों में फँसकर पशु हो गए हैं। इसके पाश इतने गहन हैं कि छूटने का उपाय भी नजर नहीं आता । ये पाश कोई संसार के नहीं हैं । हमारे ही मन के पाश हैं । अगर विश्वामित्र फिसलते हैं तो दोष भले ही मेनका पर जाए, लेकिन सचाई यह है कि विश्वामित्र जब भी फिसलेगा अपने मन की कमजोरी के कारण ही फिसलेगा । 1 Jain Education International रज्जब तें गज्ज्ब किया, सिर पर बांधा मौर, आया था हरिभजन को, करे नरक को ठौर ॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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