Book Title: Dhyan Sadhna aur Siddhi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation
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जीवन जिएँ अन्तर्हृदय से
९३
तुम आए तो थे एक महान लक्ष्य को लेकर, लेकिन यह क्या कर डाला । रज्जब एक महान संत हुए हैं । वे अपने गुरु से संन्यास की दीक्षा लेने वाले थे कि एक रूपसी के मोह में पड़ गए और विवाह रचा लिया। तब गुरु ने चेताया कि तुम तो हरि भजन करने आए थे यह क्या कर दिया । समझदारी खरीदने निकले और बेवकूफ बन गए । चमत्कार दिखाने निकले और रंगे हाथों पकड़े गए। गुरु के वचन काम कर गए और रज्जब होश में आ गए। सेहरा सिर से उतारकर नीचे रख दिया। हमें यह होश कब आएगा । हम कब जगेंगे । वे जग गए और निकल गए। मन के मायाजाल में जब तक मनुष्य बंधा रहेगा, तब तक जीवन में माया की ब्रह्म से दूरी बनी ही रहेगी। जीवन में ब्रह्म नहीं होगा, केवल स्वर्ण मृग की भ्रांति लिये माया होगी ।
महावीर और बुद्ध कहते हैं कि जन्म से कोई ब्राह्मण नहीं होता । ब्राह्मण वही है जो अपने ब्रह्म को पहचान लेता है । इस ब्रह्म की पहचान भी मनुष्य को तब ही होती है जब उसके मन से, चित्त से माया का कोहरा छंट जाता है। जो मन रोग हो गया है उसे औषधि भी बनाया जा सकता है। चंचल मन अगर निर्वात कक्ष में जलते हुए दीपक की तरह अकंप हो जाए तो यही मन मनुष्य के लिए ऊर्जा का विराट पिंड और वरदान बन है । पर हर मनुष्य के लिए मन का निष्कंप हो जाना सरल नहीं है । इसलिए मानवता को दूसरा विज्ञान चाहिए - हृदय विज्ञान । मन जब तक मन है वह नरक की ओर, मरघट की ओर ही ले जाएगा और जब यही मन हृदय के द्वारों से गुजरने लगता है नरक स्वर्ग और मरघट मंदिर बन जाता है । हमें मन को नई दिशा देनी होगी, सार्थक सोपान देना होगा। यह नया रास्ता, नई दिशा और नया सोपान अंतर - हृदय होगा । अंतर-हृदय ही मनुष्य की मूल भगवत्ता का केन्द्र है । यह जीवन के मूल प्राण की धुरी
सकता
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हृदय तो जीवन के भीतर का खिला हुआ, छिपा हुआ गुलाब है । तुम हृदय से गुलाब को निहारो, तुम पाओगे कि हृदय खुद गुलाब है। ऐसा ही हंसता हुआ, खिलता हुआ, महकता हुआ । रस और सुवास की आभा बिखेरता हुआ ।
हाँ, मुझे हृदय से प्यार है । हृदय वालों से अनुराग है । मेरा एक ही संदेश है हृदय से जिओ, हृदय वालों के बीच जिओ । सच, पत्थर भी पिघल जाएगा । ठूंठ भी हरा-भरा हो जाएगा । कुम्हलाए फूल भी खिल उठेंगे । चट्टानों से भी झरने फूट पड़ेंगे । बस, हृदय से जिओ ।
राजा जनक महर्षि याज्ञवल्क्य से पूछते हैं कि 'हम किसके प्रकाश में जिएँ' तो
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