Book Title: Dhyan Sadhna aur Siddhi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 86
________________ मनुष्य का मन और ध्यान का विज्ञान ७५ जब कोई व्यक्ति आहत-उपहत होता है, किसी बात से उसे कष्ट पहुँचता है, तो उस कष्ट की वेला में मन में जो विमर्श होता है, जो चिंतन चलता है, वह आर्त ध्यान है। कोई काम से पीड़ित होता है, कोई क्षुधा से, कोई तृषा से; उस पीड़ा और कष्टमयी स्थिति में चित्त की जो स्थिति रहती है, वह होती तो स्थिर है, एकाग्र है, किन्तु वह स्थिति आदमी को और अशान्त तथा तनावग्रस्त करती है। आर्तध्यान ही मनुष्य के मानसिक अवसाद का, डिप्रेशन का कारण बनता है। जिन्हें डिप्रेशन की बीमारी है, वे स्वयं को आर्तध्यान से मुक्त करें, स्वतः मानसिक स्वस्थता आ जाएगी। मुझे याद है : एक राजकुमार ने संन्यास स्वीकार किया। रात्रि होने पर अन्य साधु-सन्तों के साथ वे भी सो गए । यह नव दीक्षित संत अन्य संतों की कतार में सबसे नीचे के सोपान पर था। रात्रि में शौच या अन्य निवृत्ति के लिए संत उठते, उधर से निकलते जहाँ वह नया संत सोया था, बाहर जाते हुए कितना भी बचकर चलते, उसे ठोकर लग ही जाती थी अथवा पाँवों की आहट होती और उस संत राजकुमार की नींद उचट ही जाती । वह पूरी रात सो न सका और आर्त ध्यान चलता रहा। 'ओह, कहाँ मैंने संन्यास ले लिया, अरे, इससे तो अच्छा था अपने राजमहलों में रहता, आराम से चैन की नींद सोता । इनकी यह हिम्मत कि मुझे जो एक राजकुमार रहा है, पाँवों की ठोकर मारें और निकल जाएँ ! मैं यहाँ नहीं रहूँगा। मुझे ऐसी साधना नहीं करनी, मुझे ऐसी आत्म-उपलब्धि नहीं करनी।' रात भर ध्यान अवश्य रहा, पर किसका ? पाँवों से होने वाली आहट का और लगने वाली ठोकर का । वह पूरी रात यही संकल्प दोहराता रहा कि जैसे ही सुबह होगी चुपचाप अपने राजमहलों की ओर लौट जाऊँगा। सुबह हुई । सूरज ने आसमान में दस्तक दी और संन्यासी राजकुमार लौटने लगा । वह कुछ कदम चला ही था कि सद्गुरु ने पीछे से संबोधित किया, क्या बात है ? वापस लौट रहे हो ?' वह चौंका कि सद्गुरु को कैसे पता चला। कुछ कह न सका। इतना साहस न जुटा पाया कि अपने सद्गुरु से आँख मिला ले । शर्म से गर्दन नीचे झुका ली । जान गया कि गुरु ने उसके मन की तरंगों को पहचान लिया है। गुरु ने कहा कि, 'तुम्हें जाना है तो अवश्य जाओ, लेकिन जाने से पहले इतनी बात जरूर सुनते जाओ कि आज रात को दो-चार पाँवों की ठोकर लगने से और कुछ पदचापों की आहट सुन लेने से इतने व्यथित हो गए? जरा कल्पना करो पूर्वजन्म में तुम कौन थे। किस कारण से यहाँ आए हो । याद करो तुम केवल एक खरगोश को Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164