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ध्यान और विश्व का भविष्य
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देखते हुए हर व्यक्ति के लिए औषधि से भी ज्यादा जरूरी ध्यान, योगासन और प्राणायाम हैं । सम्पूर्ण विश्व को एक स्वस्थ विश्व देखने के लिए इन तीन चीजों को हर किसी से जोड़ दो। तुम ताजुब करोगे कि दुनिया से रोग मिट गये, शस्त्र-अस्त्रों की आवश्यकता न रही। पारस्परिक दूरियाँ और मनमुटाव मिट गये। लोग बहुत ही सहज, स्वस्थ और आनन्दित जीवन के स्वामी बन गये।
संभव है अतीत में कभी ध्यान, योग और प्राणायाम आम आदमी की आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि तब लोगों में इतना मानसिक तनाव, इतनी दूरियाँ और इतने रोग नहीं थे; लेकिन अब विश्व को नये दौर में इन अद्भुत चीजों को देर-सबेर स्वीकार करना ही होगा। यह तो जीवन की संजीवनी है । बगैर इसके कोई उपचार नहीं है। विज्ञान के इस युग में बहुत जल्दी ही आम आदमी को यह समझ आ जायेगी कि योगासन, प्राणायाम और ध्यान किसी धर्म के प्रवचन नहीं वरन् जीवन-विज्ञान के चरण हैं। शायद मेरी ओर से इतना अनुरोध काफी है। * लाओत्से ने 'वेई-वू-वेई' की अवस्था का जिक्र किया है यानि अक्रिया से निकली
हुई क्रिया । कृपया इसका रहस्य समझायें।
___'वेई वूवेई साधना की एक बहुत गहरी अवस्था है । झेन ने जिसे सतोरी कहा है, लाओत्से ने उसी को वेई वू वेई कहा है। यह अवस्था वास्तव में संबोधि की ही साधना है । जीवन में सम्यक बोध और सम्पूर्ण बोध के फूलों का खिलना ही संबोधि है। 'वेई वू वेई' ध्यान में घटित होने वाले साक्षित्व की परिणति है। 'वेई-वू-वेई' का अर्थ है अक्रिया से क्रिया में प्रवेश, साक्षी का संसार में प्रवेश ।
साधक के लिए क्रिया ऐसे ही है जैसे किसी निराश के लिए आश्वासन या बतौर पुरस्कार के सान्त्वना । क्रिया अभ्यास है, अक्रिया मुक्ति का प्रवेश-द्वार । मुक्ति में प्रवेश क्रिया से नहीं, अक्रिया से होता है । लाओत्से जिस क्रिया की बात कहते हैं, वह अक्रिया की घटना घटित होने के बाद फलित होता है । क्रिया करना है । अक्रिया करने के भाव से मुक्त होना है । कर-करके अब तक हम क्या पा सके । करने से पाप कमाया जा सकता है, पुण्य किया जा सकता है। अब तक पाप-पुण्य का संचय तो बहुत होता रहा, लेकिन मुक्ति फलित न हुई । हमने शरीर से कितना कुछ किया, मन और वाणी का कितना उपयोग किया ! मनुष्य की हर क्रिया तो अन्ततः शारीरिक, मानसिक, वाचिक चेष्टा ही कहलाएगी। साधना का सम्बन्ध शरीर और उसकी क्रिया के साथ कम, विशुद्धतः चेतना के साथ ही अधिक है । मुक्ति-सूत्र में आप सभी गुनगुनाते हैं
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