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ध्यान और विश्व का भविष्य
प्रश्न के अन्तिम चरण के लिए यह संकेत देना चाहूँगा कि अपने आपको रचनात्मक विचारों एवं रचनात्मक कार्यों से जोड़ो। आज हमारे विचार की चाहे जैसी स्थिति हो, हम अपने चित्त को नकारात्मक भूमिका से हटाएँ और सकारात्मक पहलुओं से जोड़ें। दुनिया की व्यर्थ से व्यर्थ वस्तुओं को भी अगर सकारात्मक मोड़ दे दिया जाये, तो वही विश्व के लिए वरदान बन जाया करती है। तब वह व्यर्थ पहल भी रचनात्मक हो जाया करता है।
व्यर्थ कोई भाग जीवन का नहीं है, व्यर्थ कोई राग जीवन का नहीं है। बाँध दो सबको सुरीली तान में तुम,
बाँध दो बिखरे सुरों को गान में तुम । अपनी बिखर रही ऊर्जा को हम समीकरण का आयाम दें । जिन्हें हम बिखराव समझते हैं, तनाव समझते हैं, घुटन समझते हैं, उन्हें जरा शान्ति से समझो, अपने आपको जीवन की प्रसन्नता का स्वर दो। अपनी अंगलियों से संगीत को जन्म लेने दो। अपने सुरों को गीत में ढलने दो । जीवन तुम्हारे लिए प्रकृति का प्रसाद है, ईश्वर का वरदान है। हम जीवन को, जीवन के भाव से जीयें, आनन्द-भाव से जीयें । मैं तुम्हारे कानों में धीरे से यह बात कह देना चाहता हूँ—'हाँ, यही ध्यान है।'
इस वर्ष मुझे संबोधि-ध्यान-शिविर में भाग लेने का सौभाग्य मिला है। इससे पूर्व मैं विपश्यना और प्रेक्षा-शिविर में भी भाग ले चुका हूँ। यहाँ मुझे ध्यान के कुछ नये अनूठे तरीके जानने को मिले हैं । आपने शिविर के साथ योगासन भी जोड़े हैं । योगासनों से ध्यान में कोई विशेष मदद मिलती है या यह स्वास्थ्य की दृष्टि से स्वीकार किया गया है।
मेरे प्रभु, यह आपकी अपनी रुचि एवं जिज्ञासा का परिणाम है कि आप ध्यान के प्रति आस्था रखते हैं और जिनकी ओर से भी ध्यान के विकास के लिए शिविर आयोजित किये जाते हैं आप उसमें शरीक होते रहे हैं । लगता है आपकी चेतना की प्यास अभी तक उत्कंठित है । इसीलिए पानी पीने के लिए कई पनघटों की तलाश जारी है। ध्यान की विधि कोई भी क्यों न हो, सभी अच्छी होती हैं । कोई किसी से कम नहीं होती। विपश्यना, प्रेक्षा, डायनामिक या कुंडलिनी ध्यान-सभी ध्यान के अच्छे प्रयोग
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