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ध्यान : साधना और सिद्धि
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लेकिन उसका ध्यान अधिकतर अशुभ विषयों पर ही केन्द्रित रहता है । इसलिए महावीर मनुष्य को एक क्रान्ति दी और कहा कि ध्यान मनुष्य को केवल ऊँचा ही नहीं उठाता, बल्कि नीचे भी गिराता है । अशुभ विषयों पर केन्द्रित ध्यान मनुष्य को अशांति, संघर्ष, तनाव और खिंचाव देता है । इसके विपरीत शुभ विषयों पर केन्द्रित ध्यान सदा उन्नति, अभ्युत्थान और निःश्रेयस प्रदान करता है । इसलिए केवल इतना ही पर्याप्त नहीं है कि हमारा ध्यान लगा या नहीं, बल्कि यह जानना आवश्यक व मूल्यवान होगा कि हमारा ध्यान कहाँ लग रहा है, किस ओर लग रहा है । केवल स्वयं से यह न पूछो कि, 'मैं कौन हूँ' बल्कि यह जानें कि, 'मैं कहाँ हूँ' । मेरी चेतना कहाँ है'। काम में है या राम में है, राग में है या रोग में, तत्त्व-चिंतन में है या भगवद्-भक्ति में ।' जहाँ-जहाँ चेतना स्थित है वहाँ-वहाँ का ध्यान है । ध्यान शुभ भी और अशुभ भी । काँटा अशुभ भी होता है और शुभ भी । अगर काँटा गड़ा हुआ है तो वह अशुभ है और उसे निकालने के लिए दूसरे काँटे का उपयोग होता है तो यह काँटा शुभ है ।
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ध्यान का अशुभ होना, अशुभ ध्यान है । ध्यान का शुभ होना, शुभ ध्यान है । अशुभ का ध्यान अशुभ ध्यान है, शुभ का ध्यान शुभ ध्यान है । अशुभ ध्यान का परिणाम अशुभ और शुभ ध्यान का परिणाण शुभ । जो स्थिति चन्द्रमा के कृष्ण पक्ष की और शुक्लपक्ष की है, वही स्थिति ध्यान की है । ध्यान का भी कृष्णपक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों है । यह बड़ी गहरी बात है। सारे संसार तक ध्यान की यह गहराई, ध्यान की यह समझ पहुँचनी चाहिए। तुम इस बात को थोड़ा ध्यान से समझ लो, तो बगैर ध्यान का अभ्यास कि तुम चित्त को सुकून दे दोगे, मन को मधुरिम बना लोगे । अशुभ से शुभ की ओर लौट आओगे ।
महावीर ने ध्यान के चार रूप कहे - आर्त-ध्यान, रौद्र-ध्यान, धर्म- ध्यान और शुक्ल-ध्यान । ध्यान की विधियाँ तो बहुत आविष्कृत हुई, लेकिन ध्यान का इतना बारीक ग्राफ, इतना सटीक विभाजन, ध्यान के सोपानों का ऐसा प्रशस्त मार्गदर्शन अद्भुत रहा । आर्त ध्यान के माध्यम से महावीर ने मनुष्य को यह समझ दी है कि जिस ध्यान का संबंध पीड़ा से होता है, जो ध्यान पीड़ाजन्य होता है और जिसका अंतिम परिणाम भी पीड़ा ही देता है, वह ध्यान आर्त ध्यान है । जिस चिंतन के द्वारा, जिस भावना के द्वारा या प्रेक्षा- अनुप्रेक्षा के द्वारा मनुष्य के चिंतन का परिणाम अंततः पीड़ादायी होता है, ऐसा ध्यान मनुष्य के लिए अभिशाप है । इस अभिशाप को भगवान ने अपनी भाषा में आर्त ध्यान
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कहा है ।
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