________________
ध्यान : साधना और सिद्धि
उसकी पत्नी को भी उसके भिक्षु-जीवन ग्रहण करने की सूचना मिल चुकी थी । वर्ष बीत गये । एक दिन वह पत्नी के द्वार पर पहुँच ही गया। पत्नी ने उसकी वंदना की, पर आशीर्वाद के बदले जब अपने भिक्षु-पति के मुख से कामजनित शब्द निकले, तो वह विस्मित हो उठी । उसने अपनी देह की अशुचिता और नश्वरता की बात कहकर भिक्षु-पति की मानसिक सोच को रूपान्तरित किया। आर्तध्यान धर्म - ध्यान में रूपान्तरित हो गया । उसने पत्नी का आभार माना और लौट गये बुद्ध के पास, बुद्धत्व की भावना लिए ।
1
७८
आर्तध्यान की तरह ही एक और अशुभ ध्यान है जिसे रौद्र ध्यान कहा गया है । आर्तध्यान का संबंध पीड़ा से होता है, जबकि रौद्र ध्यान का संबंध क्रूरता से । मनुष्य अन्तर्मन में क्रूरता से जुड़ी हुई जो बातें दिनरात चलती हैं, उनका संबंध रौद्र ध्यान से होता है । मनुष्य के हृदय में करुणा कम है, क्रूरता ज्यादा है । बुद्ध में और एक आम मनुष्य में इतना ही फर्क है कि बुद्ध में करुणा आ गई, क्रूरता चली गई । वे भी सबसे मिलते हैं, सामान्य व्यवहार करते हैं, दैनंदिनी भी सामान्य है, पर वे करुणा के सागर हो गए हैं। अगर क्रूरता रहती है तो रौद्र ध्यान और करुणा आ जाती है तो धर्मध्यान । क्रूरता का संबंध हिंसा, असत्य, चौर्य-कर्म और परिग्रह के संरक्षण से होता है ।
1
अगर आपको यह जानने को मिल जाए कि एक मनुष्य में पशु से ज्यादा क्रूरता होती है, तो शायद आप मनुष्य से घृणा ही कर बैठें। 'विश्व-प्रसिद्ध श्रृंखला' में जो किताबें निकली हैं, उनमें विश्व के चर्चित क्रूरतम लोगों की जीवनी की पूरी पुस्तक ही है । यह क्रूरता क्या है ? करुणा के निर्झर का सूख जाना ही क्रूरता है | क्रूरता यानी वैर-वैमनस्य का लावा सुलगते रहना ।
मैं नित्य प्रति देखता हूँ कि व्यक्ति छोटे-छोटे जीवों के प्रति भी इतना क्रूर रहता है कि उन्हें समाप्त करने के उपाय करता रहता है । हम एक क्षुद्र प्राणी को भी अभयदान नहीं दे पाते । प्रश्न है जब हम किसी को जीवन नहीं दे सकते, तो किसी का जीवन लेने का हक हमें कहाँ से मिल गया ।
कहते हैं कि दाउद इब्राहिम ने बंबई में विस्फोट करवाए, या किसी अन्य ने कहीं विस्फोट करवाए, या राजनेता किसी को पकड़वा देता है, किसी को मरवा देते हैं, क्यों ? क्या वे इन्सान नहीं हैं, क्या उनके पास मन नहीं है, हृदय नहीं है ? उनके पास सब हैं, वे इन्सान भी हैं, मन भी है, हृदय भी है मगर ध्यान रौद्र है। उनका चिंतन क्रूरता परक है । उनका मन हिंसा से, मृषा से, झूठ से, चौर्यकर्म से और परिग्रह के संरक्षण से
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org