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उड़िये पंख पसार
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कठिनतम कार्यों में एक है—शान्तिपूर्वक जीवन जीना । ध्यान रखो, तुम्हारे मन में अगर शान्ति है, तो तुम अनन्त वैभव के स्वामी हो । जीवन में शान्ति की सुवास नहीं, तो भले ही तुम्हारे पास संसार भर का भी वैभव क्यों न हो, तुम्हें यह वैभव भी काटेगा। तुम उस हर मार्ग का अनुसरण कर लेना, जिससे गुजरकर तुम्हारे मन की शांति खंडित न हो। बस, एक ही चीज है ऐसी जिसे तुम्हें जीना है, हर हाल में बनाये रखना है और वह है चित्त की शांति।
हम कुछ सूत्र लें।
मेरा आप सभी प्रबुद्ध महानुभावों से अनुरोध है कि हम सदा मस्त रहें, प्रसन्न रहें । जीवन में परिस्थिति चाहे जैसी आए, निराशा के दलदल में मत फँस जाना । जीवन जीने के लिए है और हम इसे ऐसे जिएँ जैसे कोई पंछी अपने पंखों को फैलाकर आकाश मे उड़ता है। जीवन में व्यक्ति इतना स्वतन्त्र और मस्त रहे।
मैं तो कहूँगा कि तुम ध्यान को भी अपने जीवन में मस्ती लेने का अंग ही बना लो। तुम मस्ती से जिओ। ध्यान की मस्ती से, आत्मा की मस्ती से । ध्यान तुम्हारे लिए ऐसा हो जाए मानो तुम ध्यान में उतरकर अपने भीतर घुट-घुट आनन्द की चाय पी रहे हो। तुम इतने प्रफुल्ल भाव से ध्यान में उतरो कि ध्यान तुम्हारी प्रफुल्लता के पुष्प को
और खिलाने वाला बने। तुम निराश और मर्दे मन से ध्यान में उतरोगे, तो इससे तुममें निराशा ही प्रगाढ़ होगी। आखिर, जिस मार्ग से, जिस तरीके से चलोगे, वैसे ही तो परिणाम आएँगे।
ध्यान कोई अभ्यास नहीं है । ध्यान यानी मन लग गया। ‘मनड़ो लागो मेरो पार फकीरी में ।' ध्यान यानी तुम्हारी मस्ती में तुम्हारा मन तल्लीन हो गया। तुम्हारे मन का, तुम्हारे विश्वास का, तुम्हारी शक्ति का सत्य में स्थित हो जाना ही ध्यान है । चैतन्य में आपूरित होना ही ध्यान है । आनन्द से अभिभूत हो जाना ही ध्यान है। मेरे देखे, ध्यान अपने में अपना विश्राम है, उपराम है । चित्त का शान्त होना और चेतना में जागृत होना—यही ध्यान का शुभारम्भ है और यही ध्यान की मंजिल ।
तुम मस्त रहो, हर हाल मस्त रहो-नफे में भी और नुकसान में भी । सम्मान में भी, और अपमान में भी । प्रणाम में भी और दुष्परिणाम में भी । तुम हर हाल शान्त रहो, मस्त रहो, बस इतना ही संदेश है, मुक्ति की फिजाओं का इतना ही पैगाम है ।
इस पहलू से जुड़ा हुआ दूसरा सूत्र लें-हम हर हाल में धैर्य धारण करें।
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