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ध्यान ः साधना और सिद्धि
हुए,ध्यान के नाम पर समय भर व्यतीत हुआ । जब तक ध्यान का जीवन हमारे व्यवहार में घटित न हो तब तक ध्यान हुआ ही कहाँ । हमारे स्वभाव और व्यवहार में जो परिवर्तन कर दे, वही ध्यान मंगलकर है । जो हमारी कथनी और करनी को एक कर दे, वही ध्यान सुखद है । जो हमारे वक्तव्य और आचरण को एक कर दे, वह ध्यान ही स्वस्तिकर है। जो हमारे चित्त को निष्कषाय और निष्कलुष कर दे, वही अमृत ध्यान है । जो भीतरी संघर्ष और मन के ऊहापोह से विरत कर दे, वह ध्यान ही श्रेयस्कर है।
___ महावीर के कान में कील तक ठोक दिये गए, हम एक मच्छर की काट से भी बिदक जाते हैं । जीसस को सलीब भी स्वीकार था, हम दो कटु शब्द भी पचा नहीं पाते। गांधी को गोली मंजूर थी, हमें तो गाली भी नहीं है । हम ध्यान को जिएँ, ध्यान के साथ यम-नियम का भी विवेक रखें । जीवन का हर कदम ध्यानपूर्वक हो, विवेकपूर्वक हो । व्यक्ति का गुरु कोई व्यक्ति नहीं होता । व्यक्ति का विवेक ही उसका गुरु है । हम ध्यान को जिएँ, जीवन-पथ पर ध्यान और विवेक को, संबुद्ध-अवस्था को जिएँ।
बस, समझ चाहिए, ध्यान की समझ चाहिए । केवल एक घंटा ध्यान ही न करो, वरन् उस ध्यान की तरंग पूरे दिन व्याप्त रहे । ठीक वैसे ही जैसे सुबह की एक खुराक दवा पूरे दिन असर रखती है और शाम की दवा रात भर असर बनाए रखती है । ध्यान की बैठक ऐसी ही है। सामान्य व्यक्ति के तो दिन भी निष्फल चले जाते हैं, पर ध्यान करने वाले की रातें भी सार्थक, सफल हो जाती हैं। भगवान करे आपकी रात्रियाँ भी सफल हों और दिन भी।
जिस मकान में अंधेरा होता है वहाँ जाने-अनजाने, चाहे-अनचाहे चोर घुस ही आते हैं। जिस घर में रोशनी होती है, वहाँ चोरों को घुसते हुए भी सोचना पड़ता है। हमारे भीतर अंधियारा है इसलिए कभी काम घुस जाता है, कभी क्रोध । कभी लोभ घुस जाता है, कभी मोह । रोशनी हो तो किसी को भी घुसते हुए सोचना पड़ेगा । मार को भी सोचना पड़ेगा कि राम के पास किस मुँह से जाऊँ, मेरी कुछ चलेगी तो नहीं।
अन्तरात्मा में, हमारी दृष्टि में ध्यान की रोशनी प्रदीप्त हो, बस ऐसा ही दीप जले, भीतर-बाहर दोनों ही दीप्त हों, दोनों ही स्वस्तिप्रद, समृद्ध हों।
ध्यान वही है, जो जीवन में घटे । भीतर भी ध्यान की धारा हो और बाहर भी । व्यवहार पर भी ध्यान की मुहर हो और अन्तरमन पर भी। ध्यान को अपने जीवन में आत्मसात् करना है, तो तुम शान्त और निरपेक्ष जीवन के स्वामी बनो । संसार के सबसे
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