________________
ध्यान ः साधना और सिद्धि
तुम्हारा कहना नहीं सुनते, तुम्हारे अधीनस्थ तुम्हारे विरुद्ध नारेबाजी करते हैं । कई मर्तबा नौकर भी तुम्हारी बात पर कान नहीं देता। फिर भी तुम्हारी चेतना बेअसर रहती है। गधा कितनी भी लात मारे, धोबी उसी के पीछे रहता है । अंधकार के अभ्यस्त हो गए हैं लोग । वासना के गुलाम हो गए हैं । वासना और मूर्छा का अंधकार अत्यंत गहन है। ओह, मूर्छा का तिलिस्म इतना तगड़ा है कि बड़े-बड़े पंडित और शास्त्रविद् भी इससे निकल नहीं पाते । आज आदमी को जरूरत ज्ञान की नहीं, अपनी मूर्छा को समझने की है । मूर्छा से मुक्त होने की है । लोगों की दुविधा तो देखो, जब समझदार लोगों के बीच आते हैं तो समझ और प्रकाश की बातें कर लेते हैं, प्रकाश-पथ के आचरण की अनुमोदना भी करते हैं। शायद दो-चार प्रयास भी कर लेते होंगे, लेकिन वे प्रयास ऐसे ही होते हैं जैसे शराब के नशे में चलाई गई पतवारें । नशा उतरने पर जब नाव से नीचे आते हैं और देखते हैं कि कहाँ पहँचे, तो पाते हैं जहाँ से चले थे वहीं हैं । आखिर, लंगर तो खोले ही नहीं गए । रातभर पतवारें चलाईं, पर लंगर खोलना भूल गए । प्रकाश की बातें खूब की, पर अंधकार का व्यामोह न छूटा । इसलिए तुम उस किनारे तक पहुँचने की परवाह मत करो। तुम केवल लंगर खोलो । हवाएँ स्वयं तुम्हें उस पार ले जाने को आतुर हैं । प्रभु तुम्हें पुकार रहे हैं। पूर्णता के प्रकाश के सागर में नाव छोड़ने के पूर्व वासना की जंजीर अलग कर देनी जरूरी है। फिर पतवारें भी नहीं चलानी पड़ती। रामकृष्ण ने कहा है : 'तू नाव तो छोड़, पाल तो खोल, प्रभु की हवाएँ हर पल तुझे ले जाने को उत्सुक हैं।
जिस दिन लंगर जंजीर के रूप में दिख जाएगा, लंगर का बंधन समझ में आएगा, तुम लंगर खोलने की क्रान्ति कर ही उठोगे । अंधकार की सही समझ ही प्रकाश की पिपासा जगाती है, तब ही हम प्रकाश की खोज करेंगे। अगर ठीक ढंग से समझ आ जाए कि क्रोध बुरा है तो अक्रोध का मार्ग खुलना शुरू हो जाएगा। अन्यथा, शांति के क्षणों में तो तुम सलाह दे दोगे कि क्रोध करना बुरी बात है, क्रोध शैतान का घर है, पर जब तुम अशांत होओगे तो शांति के क्षणों में दिया गया संदेश धूल-धूसरित हो जाएगा और क्रोध तुम पर हावी हो जाएगा। ध्यान आपको यह मार्ग देगा कि अशांत क्षणों में शांत कैसे हुआ जाए । वह हमारे चित्त में समाए असत् के अंधकार के कोहरे को, तमस् को काटने का उपाय देता है । ऐसा नहीं है कि फिर प्रतिकूल परिस्थितियाँ या प्रतिकूल निमित्त उपस्थित नहीं होंगे। अनुकूलताएँ-प्रतिकूलताएँ —दोनों ही स्थितियाँ आएँगी, लेकिन साधक वही है, सम्बुद्ध वही है जो अनुकूलता के प्रति आसक्त न हो, प्रतिकूलता के प्रति उद्विग्न न हो।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org