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मनुष्य का मन और ध्यान का विज्ञान
मेरे प्रिय आत्मन्,
ध्यान मनुष्य का सहचर है। जैसे छाया को मनुष्य से विलग नहीं किया जा सकता, वैसे ही ध्यान को मनुष्य-जीवन से अलग करना संभावित नहीं है । कामुक व्यक्ति का ध्यान लगातार काम के संयोग के प्रति समर्पित रहता है । भोगी व्यक्ति का ध्यान भोग्य पदार्थो से संबद्ध रहता है । रोगी व्यक्ति रोग-निवारण के ध्यान में मग्न रहता है। ज्ञानी व्यक्ति का ध्यान तत्त्व-चिंतन और जीवन-चिंतन के बारे में समर्पित रहता है। भक्त व्यक्ति का ध्यान भगवद्-भक्ति और भगवद्-चिंतन में लगा रहता है। जैसी जिसके मन की दशा होगी, उसका ध्यान उन्हीं केन्द्रों पर केन्द्रित रहेगा।
ध्यान व्यक्ति को वैसा ही परिणाम देता है, जिसका जिस वस्तु, विषय या पदार्थ के प्रति ध्यान बना होता है । कामुक व्यक्ति यदि मंदिर में भी चला जाए, तो उसकी आँखें काम-संयोगों के प्रति टिमटिमाती रहेंगी; और यदि किसी भक्त को वेश्यालय में भेज दिया जाए या ज्ञानी को मधुशाला में पहुँचा दिया जाए तो वे वहाँ भी मंदिर और जीवन-दर्शन के आयाम खोज लेंगे। मनुष्य का जैसा ध्यान होगा, उसे वैसे ही निमित्त मिलेंगे। और जब ध्यान और निमित्त का संयोग घटित होता है, तब परिणाम सामने दिखाई देता है।
हम जिन बातों पर निरन्तर चिंतन करते हैं, मानकर चलिए कि उसके अनुकूल
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