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ध्यानः साधना और सिद्धि
स्वयं के क्रोध को अपने वश में रखते हैं।' हुसैन चौंका, क्योंकि आयत कुरान की थी। जिसके नाम पर वह नमाज पढ़ रहा था, उसी की आयत थी। सोचा, यह ठीक कहता है। मन ही मन बुदबुदाते हुए कहा, "हां, हां, मैंने अपने क्रोध पर नियंत्रण पा लिया है
और गुलाम ने अगली आयत पढ़ी, ‘स्वर्ग उनके लिए है जो गलती करने वालों को माफ कर देते हैं।' हसैन फिर बुदबुदाए कि 'जा मैंने तुझे माफ किया।' यह सुनकर गुलाम ईश्वर की दया के प्रति अहोभाव से भर उठा।' उसने तीसरी आयत पढ़ी, “खुदा उन्हें प्यार करते हैं, जो दयालु और क्षमाशील होते हैं।'
हुसैन खड़ा हो गया। आज तक उसने कुरान सिर्फ पढ़ी थी, लेकिन आज कुरान जीवन की रोशनी बन गई । वह खड़ा हो गया। जेब से पांच सौ दीनारें निकालकर गुलाम को देते हुए कहा, 'माफ करना भाई ! आज से तुम आज़ाद हो।'
उद्विग्न भाव-दशा बदल गई । आवेश के क्षणों में विचारों की स्थिति नर्क की होती है । इसके विपरीत जब मनुष्य समता, सहानुभूति और शांति के क्षणों से गुजरेगा उसके विचारों की स्थिति स्वर्गिक होगी । जो भी महानुभाव क्रोध-आक्रोश से घिरे रहते हैं, उन्होंने एक प्रकार से अपनी नकारात्मक भूमिका बना डाली है । ‘अभिशाप' क्या है, आत्म-नियन्त्रण के अभाव में उठी नकारात्मक उत्तेजक प्रतिक्रिया है । दुर्वासा ऋषि सिद्ध साधक रहने के बावजूद क्रोध-आक्रोश से मुक्त न हो पाए, नतीजतन दुर्वासा ऋषि होने के बावजूद जन-जन की आस्था के केन्द्र न बन पाए।
हम दो प्रतीक लें—एक हैं राम, दूसरे हैं लक्ष्मण । राम प्रेम और सौहार्द के, मुस्कान और सम्मान के प्रतीक हैं, वहीं लक्ष्मण क्रोध और खीज़ के पर्याय बन गए। माना, उन्हें क्रोध तभी आता, जब वे कुछ नाजायज होता हुआ देखते । राम भी उस नाजायज का सामना करते, पर उनकी अपनी शालीनता थी, उनकी अपनी शिष्टता थी।
___आप अपनी समझ से भी अपने आवेशों को मिटा सकते हैं और ध्यान के द्वारा भी । क्रोध का जागृत होना मूलाधार का सक्रिय होना है । सारी भौतिक इच्छाएँ, वासनाएँ, उत्तेजनाएँ वहीं से जन्म लेती हैं । तुम सहस्रार की ओर उठो, उन्मुक्त आकाश की ओर । तुम अपने आपको हर उद्वेग-संवेग से उपरत पाओगे।
कृपया हम अपनी मानसिक ऊर्जा को क्रोध-आक्रोश के द्वारा नष्ट न करें । हम विचार तभी करें जब शान्त-सौम्य हो । विचार की विपरीत मनोदशा में मौन ही श्रेष्ठ है ।
विचार-शक्ति के संरक्षण के लिए दूसरा पहलू है : आशंकाओं से परहेज।
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