Book Title: Dhyan Sadhna aur Siddhi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation
View full book text
________________
ध्यानःसाधना और सिद्धि
तो तुम पाओगे तुम्हारी और तुम्हारे सम्बन्धों की फिजा ही बदल गई है।
तुमने क्या कर दिया उमर का, खंडहर राजभवन लगता है। व्यंग्य-वचन लगता था कल तक
वह अब अभिनंदन लगता है। बस, थोड़ी-सी कला आ जाए, सोच की कला, विचार-धारा को सकारात्मक बनाने की कला, विचारों को विश्वास और विकास का स्वरूप देने की कला । हम इसके लिए ध्यान का भी उपयोग करें और अपनी समझ का भी।
विचारों से मुक्त होने की एक प्रक्रिया तो यह होती है कि व्यक्ति विचारों का साक्षी भर हो जाए। ध्यान में जब तुम बैठे हो और विचारों की उधेड़बुन शुरू हो, तो उस ओर ध्यान ही न देना । जो उठता है, उठे, तुम उस उठते के साथ न उठो, न गिरते के साथ गिरो। तुम उससे तटस्थ रहो, निरपेक्ष रहो । यह एक श्रेष्ठ तरीका है। यह ध्यान की आधार भूमिका भी है। संबोधि-ध्यान की विधियों में भी इस बात को प्राथमिकता दी गई है। महावीर-बुद्ध, अरविंद-ओशो, गोयनका-कृष्णमूर्ति जैसे लोगों ने भी विचार-निरपेक्षता को मन से मुक्त होने का मूल मंत्र माना है।
मैं इस सन्दर्भ में जो बात कहना चाहता हूँ वह यह कि हर व्यक्ति उस साक्षित्व को, विचार-निरपेक्षता को साध नहीं सकता। इसलिए एक और रास्ता है, जो सरल है। सरलता पूर्णता से ज्यादा सहज-सरल होती है, दूसरा रास्ता यह है कि हम अपनी विचार-धारा को उन्नत बिन्दु से जोड़ें। उसे विज्ञान-केन्द्रित करें। हम अपने भटकते मन को ईश्वर की सत्ता के साथ संयुक्त करें । मन की चेतना को परमात्मा की चेतना से एकाकार करें । हम जीवन के बारे में मनन करें, जगत् के रहस्यों के बारे में मनन करें। इससे जहाँ मन का इधर-उधर भटकाव थमेगा, वहीं मन और विचार की शक्ति का रचनात्मक परिणाम भी आएगा।
आप अपने विचारों से विश्वास और विकास के, शान्ति और माधुर्य के द्वार-दरवाजे खोलें । जीवन का कोई भी पल, कोई भी पहल व्यर्थ नहीं जाए। जीवन की हर अन्तिम परिणति तक पहुँचना जीवन की सिद्धि ही है।
___ मैं ऐसे तीन बिन्दुओं से परहेज रखने की भी सलाह दूंगा, जो कि हमारी विचार-स्थिति के दोष हैं । पहला है आक्रोश, दूसरा है आशंका और तीसरा है आग्रह ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164