Book Title: Dhyan Sadhna aur Siddhi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 69
________________ ध्यानःसाधना और सिद्धि के साथ कि शरीर चल रहा है, मैं नहीं । मैं... चलते हुए... शरीर का साक्षी भर । शरीर सो रहा है, मैं जागृति में उतर रहा हूँ । शरीर सो जाएगा.... तुम विदेह हो जाओगे। साक्षित्व से शुरुआत । शून्य होता जाए केन्द्र, क्रियाएँ हो जाए परिधि । तुम शून्य भर होते जाओ। एक दिन शून्य भर उठेगा- तुम्हारे अपने ही सच्चे स्वरूप से, अस्तित्व के उपहार से । तुम अस्तित्व की विराटता के साथ एकाकार होते जाओगे। ___ ध्यान क्या है, इस बारे में हम संत होतेई की एक घटना को समझें । संत होतेई झेन-परम्परा का बड़ा प्रसिद्ध संत-पुरुष । कहते हैं उसकी मूर्ति अभी भी अमेरिका में, चाइना टाउन में लगी हुई है। होतेई नहीं चाहता था कि लोग उसे झेन गुरु के नाम से पुकारे या उसके पास उसके अनुयायियों और शिष्यों की भीड़ हो । बस, वह तो अपने कंधे पर एक थेला लटका लेता और उस ओर निकल पड़ता, जिस ओर बच्चे खेलते रहते । उसके थेले में कुछ फल, खट्टी-मीठी गोलियाँ, कैंडी-चॉकलेट आदि रहते, जिसे वह बच्चों को बाँटा करता। होतेई को जिसने भी देखा, पाया कि होतेई हर क्षण हँसता-मुस्कुराता रहता। लोग तो उसे हँसता हुआ बुद्ध ही कहते । चाइनीज व्यापारियों में वह 'हैप्पी चाइनामैन' के नाम से मशहूर था । एक बार, होतेई जब रास्ते पर चल रहा था कि एक प्रबुद्ध व्यक्ति ने उससे पूछा, व्हाट इज दा सिग्निफिकेंस ऑफ झेन ? झेन (ध्यान) का क्या तात्पर्य है ? होतेई ने तत्काल अपने कंधे पर लटका थेला जमीन पर उलटा कर दिया। और यही उसका मौन उत्तर था। आगंतुक ने कहा, हूंह.. । उसने पूछा, व्हाट इज दा एक्चुअलाइजेशन ऑफ झेन ? झेन (ध्यान) की वास्तविकता क्या है ? 'हैप्पी चाइनामैन' ने तुरंत थेले को कंधे पर लटकाया और अपने रास्ते पर चल पड़ा। उसकी ओर से दूसरे प्रश्न का यही उत्तर था। क्या हम कुछ समझे कि ध्यान क्या है ? स्वयं को खाली कर देने का नाम ही ध्यान है और यही झेन । शून्य होने का नाम ही ध्यान है । अक्रिया में, दृष्टाभाव में अवस्थित हो जाना ही ध्यान है । ध्यान का संदेश इतना ही है कि अन्तर्दृष्टि को उपलब्ध होओ और फिर संसार में प्रवेश कर जाओ । तुम्हारा हर कदम संन्यास का होगा । तुम्हारे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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