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ध्यान ः साधना और सिद्धि अनिवार्य हो गया।
सम्राट आशंका से घिरा हुआ, आवेश में चलता हुआ सीधा महावीर के सभामंडप में पहँचा, उद्विग्न चित्त को शांति प्रदान करने के लिए। क्योंकि राजमहल को रानी सहित जलाने का आदेश जो दिया था । सम्राट के पहुंचने पर भगवान ने कुछ शब्द कहे और बोले, “महारानी चेलना धन्य है। अरे, ऐसी सती मिलनी मुश्किल है, जो रात को सोये-सोये भी मुनिजनों के लिए इतनी चिंता करती है । नींद में भी अगर उसका एक हाथ रजाई से बाहर निकल जाता है तो सोचती है हम महल में हैं, रजाई और मखमल में हैं, फिर भी हमें ठंड लगती है। उस मुनि की क्या दशा होगी जो जंगल के बीच पेड़ के नीचे खड़ा है। धन्य है चेलना तेरी धर्म-श्रद्धा को । अब चौंकने की बारी सम्राट की थी, भगवान यह क्या कह रहे हैं । आशंका के बादल, आशंका का कोहरा छंट गया। दौड़ पड़ा महल की ओर कि कहीं आग सही में ही न लगा दी गई हो।
रास्ते में ही अभयकुमार मिल गया। पूछा, 'तुमने आग तो नहीं लगा दी?' 'सम्राट के आदेश का पालन करना मेरा कर्तव्य है'-अभयकुमार ने कहा । 'यह क्या हो गया, एक सती की, अपनी महारानी की मैंने हत्या करवा दी'-राजा विलाप करने लगा। अभयकुमार ने पूछा, 'हुआ क्या?''गलतफहमी'-उत्तर मिला । कुमार ने कहा, 'घबराने की कोई बात नहीं है, पिताश्री । आग को महल तक पहुँचने में अभी और वक्त लगेगा। अभी मैंने घास में आग लगवाई है, महल तक पहुँचने में थोड़ा समय लगेगा।'
आशंका के बादल घिर आएँ तो विश्वास का आकाश ढंक जाता है। श्रद्धा का आकाश भी आवृत्त हो जाता है। इसलिए आशंका के साथ किसी भी बिंद पर विचार मत करो, वरन् आशंका के बावजूद उसके प्रति अपने विश्वास को कम न होने दो । वैसे भी वह विश्वास ही क्या जो बात-बात में आशंका से ग्रस्त हो जाए। इसका अर्थ तो यही हआ कि जिसके प्रति हमारा विश्वास रहा, उसकी नींव बहत कमजोर थी, सो महल नीचे आ गया । विचार-शक्ति के साथ विश्वास-शक्ति बनी रहे, तो विचार-शक्ति मनुष्य के लिए ध्यान की कला और ध्यान का परिणाम हो जाता है।
अन्तिम और तीसरी बात कहँगा कि किसी भी मद्दे, किसी भी बात, किसी भी मन के लिए कोई आग्रह न हो । जैसे ही तुमने किसी बात का आग्रह किया कि स्पष्ट हो गया कि तुम किसी एक विचार को पकड़कर बैठ गए। चाहे कोई मत हो या मजहब, किताब या व्यक्ति या गुरु ही क्यों न हो, उसे पकड़कर मत बैठो। किसी भी प्रकार का आग्रह नहीं । गुण-ग्राहिता हो । सत्य का भी आग्रह नहीं होना चाहिए । सत्य तो ग्रहण
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