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विचार-शक्ति का विकास
चेष्टा हो कि मन शान्त रहे, निर्भय और निर्मल रहे। अगर ऐसा हो गया, तो तुमने बाजी मारली, तुम जीत गए ।
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निर्विचार की स्थिति श्रेष्ठ है । पतंजलि ने तो निर्विकल्प समाधि की बात कही है । मुझे नहीं लगता कि यह समाधि आदमी को जीवनभर बनी हुई रहती हो । योग-पुरुषों की बात अलग है, आम आदमी के लिए तो समाधि को आत्मसात् करना यही है कि वह शान्त मन का मालिक बना, शान्ति और समदर्शिता का स्वामी हुआ ।
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जिसका मन शान्त है, वह विचार - शक्ति का मालिक होता है । मन की अनुद्विग्नता से बुद्धि-पक्ष ज्ञान- पक्ष, चैतन्य-पक्ष सहज जागृत रहता है । मन से बुद्धि श्रेष्ठ है । बुद्धि से मन पर अंकुश लगता है । शरीर का काम है श्रम करना, बुद्धि का काम है विचार करना । हम मन और बुद्धि दोनों का सकारात्मक और समन्वित उपयोग करें । हम मनन करें । हम यह जानें कि हम क्या सोचें, किन बिन्दुओं का विचार करें। हम ऐसा क्या करें जिससे हमारे सोच पर, हमारे विचार पर हमारा सुमधुर नियन्त्रण हो । विचार हमारे मार्गदर्शक बनें और हम अपने विचारों के ।
हम विरोधाभासी विचारों से बचें। हम गिरगिट की तरह रंग न बदलें। ऐसा नहीं कि सुबह अमुक विचार और शाम को अमुक । हम किसी भी बिन्दु पर अपना मानस बनाने से पहले, निर्णय करने से पहले उस पर मनन और मंथन करें, उसके हानि-लाभ दोनों पहलुओं पर चिन्तन करें, पश्चात् निर्णय की स्थिति तक पहुँचें । बहुत अधिक न सोचें । सोचने के लिए मस्तिष्क का उपयोग करें, पर ध्यान रखें हममें जितनी एकाग्रता और स्थितप्रज्ञता होगी, हमारा विचार उतना ही गम्भीर, उतना ही पूर्ण और उतना ही सटीक होगा ।
अपने आपको हम निषेधात्मक पहलुओं में न उलझाएँ । आखिर ऐसी कौन-सी चीज है जिसका निषेधात्मक पहलु नहीं होता । शायद ऐसी भी कोई चीज नहीं है जिसका विधायक पहलु न होता हो । किसी भी चीज का विद्यमान होना ही उसका विधायक पहलु है । हम हर वस्तु के हर विचार के विधायक पक्ष की ओर जाएँ । पोजेटिवनेस !
हम जिस भी पहलु पर सोचें, विचारें, समग्रता से चिन्तन होना चाहिए । समग्रता से विचारने वाला अनिवार्यतः विधायक दृष्टिकोण का स्वामी बनता है । आज दुनिया में इस बिन्दु की सर्वाधिक जरूरत है। घर-परिवार, समाज, राष्ट्र, विश्व - हर दृष्टि से यह आवश्यक है कि हमारा विचार दृष्टिकोण समग्र हो, विधायक हो । अगर ऐसा होता है,
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