Book Title: Dhyan Sadhna aur Siddhi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 56
________________ विचार-शक्ति का विकास आक्रोश हमारे बुद्धि-पक्ष को कमजोर करता है। आशंका के चलते हम सत्य-असत्य की मिश्रित स्थिति में रहते हैं, वहीं आग्रह-कदाग्रह के कारण हम सत्य के द्वार पर दस्तक नहीं दे पाते हैं। पहला है—आवेश, आक्रोश। जिस समय आप आवेश से घिरे हुए हों उन क्षणों में किसी भी बात के बारे में विचार न करें । आवेश के क्षणों में किया गया विचार और अधिक आवेश देता है। आवेश के क्षणों में दस मिनिट का मौन रख लें । वातावरण ठंडा हो जाए, तब उस विचार, उस बिंदु, उस वस्तु पर पुनःचिंतन करें । यह हमारे द्वारा अपनी विचार-शक्ति को सुरक्षित रखना हो जाएगा। बेहतर होगा हम किसी की गलती पर क्रुद्ध या खिन्न होने की बजाय उसकी गलती को माफ कर दें । प्रतिकूल स्थिति निर्मित होने के बावजूद जो अनुकूल बना रहता है, वही चित्त की सौमनस्यता को अपने जीवन में जी सकता है । कुरआन की आयत है, स्वर्ग उनके लिए है जो गुस्से को अपने काबू में रखता है और गलती करने वालों को माफ कर देता है । इस सन्दर्भ में हम एक प्यारी-सी घटना लें। मेरी प्रिय कहानियों में एक कहानी है—पैगम्बर मुहम्मद के नाती खलीफा हुसैन नमाज अदा कर रहे थे कि तभी उनका गुलाम नौकर खौलते हुए पानी का बर्तन लेकर उधर से निकला। अचानक उसका पाँव फिसल गया और गर्म पानी के कुछ छीटे खलीफा हुसैन के शरीर पर जा गिरे । हुसैन नमाज अदा कर रहे थे, इसलिए उठ न सके। अन्यथा गलामी का युग था और छोटी-छोटी गलतियों पर गुलामों को ऐसी सख्त सजा दी जाती थी कि रोंगटे खड़े हो जाएं । लेकिन हुसैन नमाज़ अदा कर रहे थे, अतः तुरंत कछ न कर सके, लेकिन सोच रहे थे कि इसे कोड़ों से मार-मार कर अधमरा कर दूँ। नमाज की क्रिया जारी थी और दिमाग में आक्रोश का तूफान उठने लगा कि कब नमाज खत्म हो और इसे सजा दूँ । नमाज न पढ़ रहा होता तो शायद पांच-सात कोड़ों में छुटकारा मिल जाता, लेकिन क्रोध है कि बढ़ता ही जा रहा है । अब बेचारे गुलाम की न जाने क्या हालत हो । अब तो शायद पचास-साठ कोड़े पड़ ही जाएँगे । गुलाम समझ गया कि आज मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई है ऐसी गलती जो कभी माफ नहीं की जा सकेगी। उसने नमाज अदा करने वाले के सामने अपने घुटने टेके और खुदा की ओर हाथ उठाकर कुरान की कुछ आयतें पढ़ने लगा। उसने कहा, 'जन्नत उनके लिए हैं जो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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