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ध्यानःसाधना और सिद्धि
समझ में नहीं आता। मूढ़ वह है जिसे समझ में तो सब आता है, लेकिन जिगर में कुछ उतरता नहीं । हम दो पात्र लें-एक है युधिष्ठिर, दूसरा है दुर्योधन । युधिष्ठिर सत्यप्रिय, शांत । दुर्योधन घमंडी। ध्यान दें इस बात पर कि दुर्योधन मूर्ख नहीं था। जिस गुरु ने युधिष्ठिर को शिक्षा दी, उसी के पास दुर्योधन भी था। दोनों ही एक साथ शिक्षा पा रहे थे, लेकिन दोनों के बीच समझ में उतनी ही दूरी थी, जितनी पत्थर और निर्झर के बीच है । वह मूर्ख नहीं, मूढ़ था । मूर्ख अज्ञानी होता है, मूढ़ मूर्च्छित । वह स्वयं ही कहा करता था-'जानामि धर्मम् न च मे प्रवृत्तिः, जानामि अधर्मम् न च मे निवृत्तिः'-मैं जानता हूँ धर्म को, मगर प्रवृत्त नहीं हो पाता, मैं जानता हूँ अधर्म को भी, पर निवृत्त नहीं हो पाता। मूढ़ता है यह । ज्ञान होते हुए भी ज्ञान के अनुसार न जी पाना, इसी को कहते हैं मूढ़ता।
मूर्ख एक दफा माफ किये जा सकते हैं, लेकिन मूढ़ को चलाना खोटे सिक्के को चलाना है । ध्यान मूढ़ता को तोड़ने की औषध है । भीतर की मूर्छा को, भीतर के तमस को तोड़ने का सूत्रधार है ध्यान । हम ध्यान के द्वारा अपनी मूढ़ता समझें और उसके पार लगें।
__ हम अपनी मूढ़ता को तोड़ने के लिए क्या अपनी इच्छाशक्ति, विचार-शक्ति का उपयोग करना चाहेंगे? मैं चाहूँगा हम अपने आप पर विचार करें, अपने बारे में विचार करें, अपनी विचार-स्थिति पर विचार करें ।
कुछ लोग होते हैं जिनमें विचार करने की क्षमता होती है । लेकिन ये भी दो प्रकार के होते हैं, एक जिनमें विचार करने की क्षमता तो हैं, लेकिन आत्म-विश्वास की कमी होने की वजह से उनका विचार कभी विश्वास नहीं बन पाता, निर्णायक रूप नहीं ले पाता । आप सबमें भी विचार करने की क्षमता तो अवश्य है, लेकिन आत्म-विश्वास की कमी के कारण वह विचार हमारा व्यक्तित्त्व नहीं बन पाता, हमारे जीवन का प्रकाश नहीं बन पाता। दूसरी विचार की अवस्था है निर्विचार होना, शान्त मन का स्वामी होना। इस स्थिति में हम द्रष्टा भर रहते हैं हर उधेड़बुन के । तब हममें विचार-शक्ति पूर्ण होती है, लेकिन विचारों का बहाव थम चुका होता है । उद्विग्नता समाप्त हो गई होती है । चढ़ते-गिरते भावों का बवंडर रुक गया होता है।
शान्त मन का स्वामी होना जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है । अशान्त मन का गुलाम होना जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी है । शान्त मन को सीमित साधन भी सुखावह हैं । अशान्त मन को राजमहल भी कष्टकर है । शान्त मन स्वस्थ जीवन का सूचक है, अशान्त मन रुग्ण जीवन का । हमारी ओर से एक ही सजगता और एक ही
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