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ध्यान ः साधना और सिद्धि
सकते हो, पर अपने में जाना हो तो कोई साथ काम न देगा। अगर भीतर में इनका साथ है भी तो वह तुम्हारे मूर्छा का ही अंश कहलायेगा। तुम्हें अपने आपको इनसे विलग करना होगा। ध्यान के लिए तुम्हारे अन्तरमन को इन रागात्मक अनुबन्धों से विनिर्मुक्त करना होगा।
___ तुम अपने में ध्यान को साधो और फिर समाज की ओर कदम बढ़ाओ । समाज तुम्हारे लिए ध्यान की कसौटी बन जाएगा। तुम भीड़ में रहकर भी, भीड़ से गुजरकर भी कितने अपने-आप में रह सके यह तो तुम्हें बाद में ही पता चलेगा। भीड़ में रहकर भी यदि तुम अपने एकत्व-बोध को सुरक्षित रख सके, तो साधुवाद ! तुम ध्यान-सिद्ध हए। वही असली ध्यान-साधक है, जो कोलाहल के वातावरण में जाकर भी, अपने चित्त को अशान्त नहीं होने देता, जो हर हाल में अपनी शान्ति को बनाये रखता है, शान्त मन का स्वामी रहता है।
ध्यान शान्ति के लिए है और शान्ति जीवन के लिए। तुम हर हाल अपनी शान्ति को बनाये रखो, स्थिति चाहे जैसी हो, कसौटी चाहे जैसी हो । तुम एकान्त या समूह की बात को अहमियत देने की बजाय ध्यान में उतरो, ध्यान को जिओ। ध्यान तुम्हें जरूर सुकून देगा, तुम्हारे लिए नये द्वार-दरवाजे खोलेगा-रहस्य के, मुक्ति के, प्रगति के।
आज के लिए इतना ही।
नमस्कार।
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