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एक डुबकी अपने भीतर परिणाम मानता हूँ । ध्यान को तब भी व्यक्तिगत रूप में जीया जाता था और आज भी। जैसे आज ध्यान को सामूहिक रूप में जीया जाता है, ऐसा ही अतीत में भी होता रहा है। मनुष्य की मानसिक मेधा और क्षमता को बढ़ाने के लिए प्रतिदिन सुबह और शाम गुरुकुलों और विद्यापीठों में ध्यान करवाया जाता था। माना कि महावीर या बुद्ध जैसे लोगों ने एकांत में बैठकर ध्यान धरा था, लेकिन भगवान के शिष्य उनके सान्निध्य में भी ध्यान को सामूहिक रूप से जीते थे।
ध्यान का प्रयोग सामहिक रूप से किये जाने के बावजूद मैं इस बात का हामी हूँ कि ध्यान निजी प्रयोग है, अपने-आपके साथ प्रयोग है, अपने आपमें उतरने का प्रयोग है। समूह में ध्यान का प्रयोग इसलिए करते हैं ताकि एक तो एक दूसरे का आभामंडल हमें परस्पर तरंगित और ऊर्जस्वित करे; दूसरा अपने पड़ौस में आसीन दूसरे साधक को आगे बढ़ता देखकर हमें भी प्रेरणा मिले।
जहाँ समूह में ध्यान होता है, वहाँ वह स्थान अपने-आप ही चैतन्य हो उठता है। यह एक पारम्परिक मान्यता है कि जो मंदिर सौ वर्षों से पूजा जा रहा है वह अपने आप में ही तीर्थ बन जाता है । हम जरा यह समझने की कोशिश करें कि जिस कक्ष या जमीन पर सौ लोग एक साथ ध्यान करते हैं और निरन्तर सौ दिनों तक करते हैं तो क्या वह स्थान उन साधकों की साधना से चार्ज नहीं होगा ! जहाँ साधक लोग बैठकर साधना करते हैं, उस स्थान की माटी अगर शीश पर चढ़ाई जाये तो मैं बड़े प्रेम से कहना चाहूँगा कि ऐसा करना किसी मंदिर में जाकर चंदन या केशर का तिलक लगाने से कम पुण्यकारी नहीं होगा। मैं तो कहूँगा उस साधना-कक्ष की माटी को अपने शीष पर चढ़ाने वाले का बिगड़ा भाग्य सुधर जाएगा। तुम्हारे विपरीत ग्रह-गोचर भी अनुकूल हो जाएँगे।
हम समूह में भी ध्यान करें और एकान्त में भी । आखिर एकान्त में ध्यान धरने वाले को भी समूह में ही रहना-बैठना-जीना होता है । अतः क्यों न हम दोनों ही स्थितियों में ध्यान को सहज रखें, सहज बनायें । अगर तुम समूह में भी ध्यान करोगे तो इस बात को ध्यान रखो कि आखिर तुम्हारी ध्यान की बैठक व्यक्तिगत ही हो रही है । तुम भला किसी और में थोड़े ही उतर रहे हो । तुम तो अपने आप में उतर रहे हो । अपने-आपमें उतरना तो हमेशा व्यक्तिगत ही होता है, फिर चाहे तुम समूह में ही क्यों न बैठे हो।
ध्यान में तो केवल तुम होते हो । वहाँ किसी और को अपने साथ ले जाया नहीं जा सकेगा। अगर कोई साथ है तो उसको भी हमें बाहर ही छोड़ना होगा। किसी घर में जाते हो तो अपनी पत्नी को, बच्चों को, माँ-बाप या यार-दोस्तों को साथ ले जा
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