________________
ध्यान : साधना और सिद्धि
अन्तरंग को भी जानना चाहिये । देह के स्थूल अंतरंग को जानने के लिए किसी मेडिकल कॉलेज जाएँ और वहाँ जाकर शरीर की सारी बायोलोजी को प्रेक्टिकल जानें, देखें । अगर आत्म-दृष्टि पूर्वक यह तटस्थ निरीक्षण किया जाये तो देह के प्रति एक अद्भुत अनासक्ति आयेगी । ऐसा मैंने पाया है ।
1
२२
*
वातावरण और स्थान का प्रभाव पड़ता है । अतः हमेशा शहर के कोलाहल से दूर ध्यान का अभ्यास करावें तो कैसा रहे ? क्या वह अधिक शांतिवर्धक नहीं रहेगा ?
जब तक ध्यान की गहराई प्राप्त न हो हिमालय की गुफा और बाजार का अन्तर रहेगा । ध्यान की ऊष्मा आने पर बाजार क्या और हिमालय क्या ! बाजार में ही हिमालय उतर जाएगा । जब ध्यान उतर रहा हो तो शहर क्या और जंगल क्या । तब तो जंगल में भी शहर होगा और शहर में जंगल । वातावरण और स्थान का प्रभाव पड़ता है, लेकिन ऐसे स्थान उपलब्ध नहीं होते जहाँ केवल ध्यान- मंदिर ही हो, केवल ध्यान योग ही किया जा सके ।
संबोधि-धाम को इसीलिए मूर्त रूप दिया जा रहा है, जहाँ कि शान्त - सौम्य - शीतल वातावरण में ध्यान को जिया जा सके। जब तक ऐसा न हो, हमें ऐसे ही किसी स्थान का उपयोग करते रहना पड़ेगा । अन्तर- शांति की पहचान के लिए वातावरण का शान्त, सौम्य होना अवश्य ही लाभदायक है ।
फिर एक बात अनुरोध कर दूँ कि माना, मेरे पास तुम नीरव वातावरण में ध्यान लगा लोगे, पर यहाँ से वापस तुम घर लौटोगे । वहाँ के वातावरण में, कुछ तो वह होता है, जो तुम्हें ध्यान में बाधक लगे । कोलाहल तो बाहर भी है और भीतर भी । भीतर के कोलाहल को सुनने-समझने के लिए बाहर के वातावरण का शांत-सौम्य होना जरूरी है, पर जिस दिन तुम्हें अपने भीतर के कोलाहल की पहचान हो जाएगी, तुम्हें लगेगा भीतर कहीं ज्यादा शोरगुल है ।
तुम अपने ध्यान को हर वातावरण में जीने की कोशिश करो । शान्ति में भी, शोर में भी । तुम शोर में भी अपने भीतर की शांति को बरकरार रख सको, यही श्रेष्ठ है ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org