Book Title: Dhyan Sadhna aur Siddhi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 31
________________ २० ध्यान : साधना और सिद्धि जब व्यक्ति स्वयं के प्रकाश में जीने लगता है तब उसके लिए इन रंगों का अर्थ है । देते हैं । ये रंग उसे उसकी लेश्याओं से परिचित कराते हैं । जो भी रंग आप देखते हैं, वह आपके ही स्वभाव के परिचायक हैं, आपका अपना प्रतिबिम्ब है । हर रंग आपके चित्त की स्थिति बयान करता है । इसलिए अपनी स्थिरता, अपनी एकाग्रता, अपनी सजगता को गहराई दें, बढ़ाएँ । प्रकाश सूक्ष्म होता जाएगा और अन्त में मूल प्रकाश से परिचय होगा । | स्वयं में प्रकाश का पुंज नजर आना, अपने आप में शुभ संकेत है । कृपया अपने इस प्रकाश का उपयोग करो। अपने सम्पूर्ण मस्तिष्क में प्रकाश- कणों को फैल जाने दो । स्वयं में समायी पाशविकता और अहंकार युक्त चेतना में इस दिव्यत्व को उतरने दो । स्वयं के भौतिक मन में आत्मिक प्रकाश को फैल जाने दो। देह में स्वतः दिव्यता आयेगी । काया कंचन होगी । जीवन का कायाकल्प होगा । I आँसू आये, तो रोको मत । न आये, तो उसकी चेष्टा भी मत करो । सहज में जो हो जाये, उसका स्वागत है । हर स्थिति का स्वागत है । अहोभाव से उसका भी आनन्द लो । I पूछती हो कि क्या मैं ध्यान में सफल हो सकती हूँ? बेहतर होगा इस प्रश्न को दिमाग से निकाल ही फैंको । जहाँ अभीप्सा है और अन्तर - तल्लीनता, वहाँ ध्यान सफल ही है । भीतर जागो और जिओ, इतना ही ध्यान है । तुम्हारा ध्यान सफल होगा । सफलता को तुम्हारी आवश्यकता है । * ओम् का नाभि तक न पहुँचने का क्या कारण है ? महत्वपूर्ण यह है कि 'आप' कहाँ तक पहुँचते हैं । कभी आपने गौर किया है कि आपकी श्वास कहाँ तक पहुँच रही है । आपकी श्वास ही नाभि तक नहीं पहुँच पाती । आपकी श्वास सिर्फ फेफड़ों तक, सीने तक ही सीमित रह जाती है । आप ऊपर-ऊपर के हिस्से में ही श्वास पहुँचाते हैं । आपने शिशुओं को देखा है, उनका पेट कैसे श्वास के आने-जाने के साथ ऊपर-नीचे होता है । और स्वयं को देखो पेट तक साँस पहुँच ही नहीं पाती । हाँ, जब तुम सो जाते हो तब श्वास पेट-नाभि तक पहुँच पाती I है । क्योंकि तब तुम्हारा शरीर प्रकृति से संचालित होने लगता है । तुमने जापानी बौद्ध प्रतिमाएँ देखी होंगी । कैसा विशाल पेट बनाते हैं भगवान बुद्ध का । इसका एकमात्र I Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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