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एक डुबकी अपने भीतर
'प्रभु ।'
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प्रश्नकर्त्ता ने प्रारम्भ व अंत दोनों जगह प्रभु लिखा है । जहाँ प्रारम्भ भी प्रभु सेहो और अंत भी प्रभु से, वहाँ प्रश्न मिट जाते हैं । वहाँ प्रश्न स्वतः तिरोहित हो जाता है । जहाँ प्रभु ही प्रारम्भ है और प्रभु ही समापन, वहाँ मध्य में भी प्रभु ही विराजित है । प्रभु को अगर अंत में रख दिया या दरकिनार कर दिया तो प्रभु किनारे चला गया और तुम्हारा अहंकार ऊपर उठ गया । प्रभु का संबोधन, उद्बोधन इसलिए ताकि हमारे भीतर अहंकार की ग्रंथि का निर्माण ही न हो। हम सब एक हो जाएं। पूछा है— तीन चार मिनिट बाद गोल पुंज सा घूमता दिखाई देता है । भले ही यह हमारा ध्यान में प्रवेश हो, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनका परीक्षा में प्रवेश पाना ही सफल हो जाना होता है । जिन्हें ध्यान साधना है, अगर अभीप्सा गहरी हो तो शीघ्र ही सध जाता है और कुछ जो ऊपरी प्रयास ही करते हैं, वे दीर्घ साधना के पश्चात् भी ध्यान की गहराई में प्रवेश नहीं कर . पाते 1
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अक्सर ऐसा हो जाता है कि बच्चों को समझ में आ जाता है कि क्रोध करना ठीक नहीं है और वह क्रोध नहीं करता, लेकिन दादाजी लम्बी उम्र गुजारने के बाद भी क्रोधित हो उठते हैं। बात केवल सधने की है। बच्चे को भी कोई साधना सध जाती है और न सधे तो जीवन व्यतीत हो जाता है और तुम खाली के खाली रह जाते हो । और अश्रु तो तुम्हें निर्भर बना देते हैं । तुम्हारे अन्तस् का प्रायश्चित ही अश्रु रूप में उमड़ता है । मन की मलिनता बाहर निकल रही है। बेहतर होगा इन आँसुओं के साथ भीतर के कल्मष को निकल जाने दो। और फिर जो बात जिह्वा नहीं कह पाती, वह अश्रु कह जाते हैं, हृदय बोल जाता है । इसलिए आँखें झरती हैं, झरने दो। ध्यान में अगर हृदय नहीं उमड़ा, खुमारी न आई, तो ध्यान अधूरा ही रह गया । हृदय ने हिलोरें न लीं, तो एक घंटा बैठक हो गई, ध्यान भी हो गया, पर अहोभाव न उमड़ा ।
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जनक ने याज्ञवल्क्य से पूछा, भगवन् हम किसके प्रकाश में जिएँ ? याज्ञवल्क्य ने कहा सूरज के प्रकाश में जिओ । जनक ने पूछा अगर सूरज न निकला हो तो किसके प्रकाश में जिएँ ? उत्तर मिला चन्द्रमा के प्रकाश में। और अगर अमावस की रात हो चाँद भी न निकला हो तो किसके प्रकाश में जिएँ ? कहा कि दीपक के प्रकाश में। फिर पूछा कहीं दीपक का भी साधन न हो तो ? तो शास्त्र के शब्दों के प्रकाश में, गुरु के मार्गदर्शन में जिओ । जनक ने पूछा अगर वह भी उपलब्ध न हो तो ? याज्ञवल्क्य ने कहा, 'तब स्वयं की आत्मा की ज्योति में जिओ ।'
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