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1.2.43.
श्रधेय श्री मुनि जी कि सेवा मे
सविनय प्रणाम, आपका कृपापच मा० २०-१-४३ का. जैसलमेर से लिखा आया यंत्र विशेष उत्साह जनक और मनोरंजन है इसका उन् तो अवसर मिलनेवर खिसँगै वर्तमान में तो आपने रुपये मंगवाया इसके पहुंचने में विलम्ब न हो, इस विचार से यह छोटा सा नोट लिखकर भेज रहाऊ सौ सौ के नोट वहां जैसे स्थान में भुजा नमू कष्ट न हो इस विचार से हस हस के ही भेजे भाई शंभू को - १५००) आपके लिखे अनु सार आव लेख दिया है
पूज्य माजी कि तबियत वैसी ही है, उनका तथ और सर्वों का प्रणाम। यहां सब मजे मे हैं आप अपने कुशल समाचार से अनुगृहीत करते रहे। इससे आपको अपने मनोवांछित कार्य तो मिल गया है भगर उसके आवेश मे आप अपने स्वास्थ्य का ध्यान नभुजादे उसी पर सब निर्भर है, विशेष फिर, श्री मुंशिजी से पच व्यवहार चटन रहा है। सीर १९८८ माघ ब - ११
सिंघीजी के सुन्दर देवनागरी हस्ताक्षर
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