Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं
इसकी विधि गांधी से सीखनी होगी। बड़ी बड़ी क्रान्तियों की बात सभी करते हैं, पर हमारे देश की समस्याओं के समाधान के कुछ अहं मसले ऐसे हैं जो चाह कर भी समाहित नहीं हो पा रहे हैं, इन के समाधान का रास्ता गांधी से सीखना होगा। वोट के लिए धार्मिक भावनाओं को जगाना, जातिवाद को उकसाना, स्थानीयता. वाद को प्रश्रय देना, राष्ट्र को बीमार डालना है। पर हम अपने स्वार्थों के लिए यह सब करते जा रहे हैं। धर्म के लोग धर्म की नही, अपने संप्रदाय की रक्षा पर बल देते हैं । फलतः सड़क का आदमी मार डाला जाता है और हम मन्दिर, मस्जिदों में बैठ, पूजा करके कर्तव्य की इतिश्री मान लेते हैं। गांधी इसमें हमारी सहायता कर सकते हैं। राजनीति भी आज के युग में सर्वप्रमुख भूमिका अदा करती है गांधीजी ने राजनीति में जिस तप, संयम एवं अहिंसा आदि का परिपालन करके उसे शुद्ध करने का पथ प्रशस्त किया, उसका अनुसरण किया जाना चाहिए। धर्म के लोग अध्यात्म की बहुत चर्चा करते हैं। उनको समाज सेवा के अध्यात्ममार्ग का उद्घाटन करके आज की विषम परिस्थितियों को काबू में करने की अत्यन्त आवश्यकता है। पर यह काम तभी संभव होगा, जब राजनीतिक लोग ईमानदारीपूर्वक धर्म के क्षेत्र से संन्यास ग्रहण कर लें।
कहा जाता है कि शिक्षा संस्थायें. शिक्षा शास्त्री एवं साहित्यिक केवल कक्षाओं या सेमिनार कक्षाओं में बैठ कर समस्याओं पर विचार कर लेते हैं और उतने मात्र से वह अपने कर्तव्य परिपालन की पूर्णता मान लेते हैं । मैं समझता हूँ कि आज के सन्दर्भ में शिक्षा जगत के व्यक्तियों को कक्षाओं से बाहर आकर समीपस्थ मुहल्लों के दुखदर्द की ओर भी ध्यान देना चाहिए, वरना हमारी शिक्षा संस्थाओं से जनता का विलगाव सुफल नहीं प्रदान करेगा। गांधी जी के इस सन्दर्भ में भी कुछ प्रयोग हैं उनका भी मनन करना होगा और अनुगमन करना होगा। यह विश्वविद्यालय स्वदेशीय संस्कृति का पूजक माना जाता है, गांधी जी भी स्वदेशी के उपासक थे। पर आज जो समाज में सर्वत्र परायापन व्याप्त है. उसका समापन कैसे हो? इसके लिए वातावरण के निर्माण पर बल दिया जाना चाहिए । अपनी संस्कृति की अच्छाइयों पर बल देने के साथ-साथ कुसंस्कारों के समापन पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए । दहेज का उन्मूलन, छुआ-छूत का समापन, सन्तति निरोध, स्वदेशीय संस्कृति में गौरवाधान आदि कुछ ऐसे ठोस कार्य हैं, जिसके सम्पादन में इस परिसर का समाज के लिए काफी बड़ा योगदान हो सकता है।
हम 'वसुधैव कुटुम्बकं' 'यत्पिण्डे तदेव ब्रह्माण्डे' तथा 'सर्वभूतेषु चात्मानं' की भावना की बात करते हैं, और इससे व्यक्ति और समाज की एकता की साधना
परिसंवाद-३
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